किसान के पेट में चला गया आधा लीटर कीटनाशक, 24 दिन लड़ा जिंदगी की जंग…डॉक्टरों को लगाने पड़े 5,000 इंजेक्शन

पाली। धरती पर डॉक्टरों को भगवान का दूसरा रूप माना गया है। क्योंकि एक डॉक्टर ही है जो मरते हुए इंसान को बच सकता है।…

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पाली। धरती पर डॉक्टरों को भगवान का दूसरा रूप माना गया है। क्योंकि एक डॉक्टर ही है जो मरते हुए इंसान को बच सकता है। डॉक्टर आखिरी उम्मीद तक उसे बचाने की कोशिश करता है। ऐसा ही मामला राजस्थान के पाली से सामने आया है। जहां एक मरीज को बचाने के लिए डॉक्टरों ने जी-जान लगा दी।

जानकारी के अनुसार, पाली में एक किसान अपने खेत में फसल को कीड़े से बचने के लिए कीटनाशक दवाई का छिड़काव कर रहा था। उसी दौरान जहरीली दवा उसके शरीर के अंदर भी चली गई। किसान के शरीर में जहरीली दवा अंदर जाते ही वह अचेत होकर वहीं गिर गया। काफी देर तक किसान जब घर नहीं लौटा तो परिजन उसे ढूंढते हुए खेत पर पहुंचे। उन्होंने किसान को अचेत देखा तो वो उसे तुरंत अस्पताल लेकर पहुंचे।

कीटनाशक दवा इतनी जहरीली थी, जिससे किसान की जान बचना मुश्किल थी। लेकिन, फिर भी डॉक्टरों ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने मरीज की जान बचाने में जी-जान लगा दी। करीब 24 दिन तक किसान को अस्पताल में भर्ती रखा गया, इस दौरान मरीज को 5000 इंजेक्शन लगाए गए। आखिरकार डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई और अब मरीज बिल्कुल ठीक है। डॉक्टरों ने बताया कि मरीज के शरीर में 600 एमएल के करीब कीटनाशक चला गया था।

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राजकीय मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. दीपक वर्मा ने बताया कि पाली बांगड़ चिकित्सालय में एक मरीज को लाया गया, जिसकी हालत बहुत खराब थी। उसके शरीर में बहुत अधिक मात्रा में कीटनाशक पदार्थ (ऑर्गेनोफॉस्फोरस पॉइजनिंग) चला गया था। किसान की उम्र 35 वर्ष के लगभग थी, उसको गंभीर स्थिति में बेहोशी की हालत में बांगड़ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मरीज को अस्पताल में पहुंचने पर उसे 350 इंजेक्शन एट्रोपीन (एंटीडॉट) के लगाए गए और मरीज को आईसीयू में भर्ती किया गया। साथ ही उसकी गंभीरता को देखते हुए किसान को मैकेनिकल वेंटीलेटर पर रखा गया था।

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24 दिन अस्पताल में भर्ती रहा किसान…

डॉ. प्रवीण गर्ग की टीम ने पहले मरीज के गले में छेद करके मरीज को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन देनी शुरू की, क्योंकि मरीज सांस भी नहीं ले पा रहा था। इसके बाद उसे एंटी डॉट ड्रग एट्रोपिन के इंजेक्शन देने शुरू किए। मरीज की जान बचाने के लिए मरीज को प्रतिदिन 208 इंजेक्शन लगाए जाते थे ताकि जहर का असर खत्म हो सके। इसके साथ ही मरीज को दवाइयां भी दी जाती थी। 24 दिन तक मरीज को अस्पताल में डॉक्टरों की कड़ी निगरानी में रखा गया। धीरे-धीरे मरीज की हालत में सुधार हुआ। अब 24 दिन बाद मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो गया और डॉक्टरों ने उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी है।

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