कोटा से मिली हताशा..तो छोड़ दिया शहर, मेहनत से बना पायलट, आज 1 करोड़ से ज्यादा है सालाना पैकेज

कोटा। देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग सिटी के नाम से मशहूर राजस्थान के कोटा शहर इन दिनों स्टूडेंट सुसाइड के लिए बदनाम हो रहा…

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कोटा। देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग सिटी के नाम से मशहूर राजस्थान के कोटा शहर इन दिनों स्टूडेंट सुसाइड के लिए बदनाम हो रहा है। गहलोत सरकार और जिला प्रशासन द्वारा तमाम प्रयास करने के बावजूद भी कोटा में कोचिंग स्टूंडेंट्स की सुसाइड के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है।

बुधवार को भी कोटा शहर में एक बार फिर कोचिंग छात्रों को लेकर दर्दभरी खबरें सामने आई हैं। यहां एक और कोचिंग छात्रा ने आत्महत्या कर ली। झारखंड के रांची की रहने वाली 16 वर्षीय छात्रा रिचा सिन्हा पांच महीने से कोटा में रहकर नीट की तैयारी कर रही थी। वह इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स स्थित हॉस्टल में रह रही थी। कोटा में इस साल 25 स्टूडेंट सुसाइड कर चुके है।

कोटा में हर छात्र पर होता है पढ़ाई का प्रेशर…

कोटा में स्टूडेंट्स के सुसाइड के बढ़ते मामलों को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ बनने की जिद, जुनून और जज्बा लेकर कोटा पहुंचने वाले छात्रों पर पढ़ाई का बहुत प्रेशर होता है जिसे वो डील नहीं कर पाते। जब उन्हें लगता है कि वह असफल हो रहे तो ऐसे में कुछ अपनी जान देने को मजबूर हो रहे है।

कोटा में यूं तो हजारों स्टूडेंट्स कामयाब हुए। कोई डॉक्टर तो कोई इंजीनियर बन गया। इन्हीं में बहुत से स्टूडेंट्स ऐसे भी है जो यहां आकर असफल हुए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और अपने हौसलों को और मजबूत करके कामयाब हुए। उन्हीं में एक ऐसे स्टूटेंड की कहानी है, जो यहां से निकलकर कुछ अलग ही मुकाम हासिल किया।

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इंजीनियर बनने की उम्मीद लेकर कोटा आया…

हरियाणा के रहने वाले दीपक की कहानी भी ऐसी है, जो कभी कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी को गए थे। लेकिन, कुछ दिनों में ही उनका दम घुटने लगा। दीपक को अपने किसान पिता की आर्थिक स्थिति के बारे में अच्छी तरह पता था। परिवार को भी उनसे उम्मीद थी कि उनका बेटा इंजीनियर बनेगा। ऐसे में दीपक को कई बार असफलता मिली, लेकिन उसने हार नहीं मानी।

बार-बार असफलता के बाद भी परिवार ने उसके मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा जगाए रखा। कई बार असफलता के बाद दीपक मानस‍िक रूप से परेशान हो गए। आखिरकर दीपक ने कोटा छोड दिया। इसके बाद उसने दूसरे फील्ड में जाने की सोची। आखिरकार दीपक ने कुछ अलग करते हुए ऐसा किया जिसके बाद उसकी जिंदगी बदल गई। आज हम दीपक की कहानी इसलिए बता रहे है क्योंकि उसकी ये दास्तां कई स्टूडेंट्स की जिंदगी बचा सकती है। आखिर कोटा में बार-बार असफल हुए दीपक एक सफल पायलट बना, आइए जानते है।

ये कहानी है…हरियाणा के रेवाड़ी जिले के साबन गांव के रहने वाले दीपक राठी की। दीपक के पिता एक आम किसान हैं जिनकी सालाना कमाई 3 लाख रुपए है। दीपक ने दसवीं पास की तो पिता ने पैसों का का इंतजाम करके अपने बेटे को इंजीनियर बनने के लिए कोटा भेजा। दीपक भी वहां पूरे मन से जेईई की तैयारी करने लगा।

दीपक ने अपना कोटा का अनुभव साझा करते हुए बताया कि साल 2011 में 10वीं में अच्छे नंबर आने पर वह दोस्तों की सलाह पर आईआईटी क्रैक करने का सपना लेकर यहां पहुंच गया। उस समय मेरी उम्र बहुत छोटी थी। वहां तैयारी शुरू की और 12वीं पास करने के बाद JEE Main की तैयारी में जुट गया।

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कमरे में दम घुटने लगा था…

दीपक बताते हैं कि वह जेईई मेन करके आईआईटी में दाख‍िले के लिए एडवांस्ड परीक्षा निकालना चाहता था। इसके लिए मैं कोटा पहुंच गया। लेकिन एक छोटे से कमरे में मेरी जिंदगी सिमट कर रह गई। उसी रूम में रहना, और मेस के खराब खाने ने को लेकर मैं परेशान होने लगा। मेरा कमरा इतना छोटा था कि उसमें सिर्फ एक छोटा पलंग, टेबल और चेयर रखने की जगह ही थी। 10-15 मैस बदलने के बाद भी हर जगह खाना वैसा ही मिला। धीरे धीरे एक ही रूटीन, कंपटीशन का प्रेशर और नीरस माहौल से मुझे निराशा होने लगी। मैं अब परेशान रहने लगा था।

कोटा में मिथ और पाबंदियां…

उन्होंने बताया कि कोटा में आने वाले हर स्टूडेंट की अपनी अलग ही दुनिया हैं। यहां आप सुबह उठो तो आपकी आंखों के सामने बुक होनी चाहिए, तभी आप सफल हो पाओगे। कोटा में ये मिथ है कि अगर आप 16-18 घंटे नहीं पढ़ रहे तो आपको सफलता नहीं मिलेगी। पढ़ाई का ऐसा प्रेसश कि ना आप मूवी देखने जा सकते थे, ना घूमने। अगर आप ये काम करते हो तो आपके आस पास वाले सवाल उठाते हैं कि ये कैसे सफल होगा?

आज भी याद है परिणाम का वो दिन…

मुझे आज भी वो दिन अच्छी तरह से याद है जिस दिन जेईई मेन्स का परिणाम आया था। मैं अपने पापा के साथ बैठा था, हाथ-पैर कांप रहे थे, डर लग रहा था। रिजल्ट खुला और जिसका डर था वही हुआ, मैं परीक्षा में असफल हुआ। पूरी मेहनत और पैसा खराब हो गया था, अंदर से टूट गया था। लेकिन, उस समय मेरे पापा मेरे साथ थे। उन्होंने मुझे समझाया, पापा ने हमेशा मेरा साथ दिया।

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सांइस छोड़ बीए में लिया दाख‍िला, UPSC को बनाया लक्ष्य…

इसके बाद मैं साल 2013 में कोटा छोड़कर वापस घर आ गया। वापस आने के बाद साल 2014 में दिल्ली में बीए में एडमिशन लिया। सांइस से आर्ट्स स्ट्रीम बदलने पर भी दोस्तों ने भी ताने कसे। लेकिन, मैंने किसी की न सुनकर अपने दिल की सुनी। इसके बाद बीए की पढ़ाई करने के बाद मैंने पायलट बनने की ठान ली।

लेकिन, परिवार के पास उतने पैसे नहीं थे। इसलिए उनके पिता ने बैंक से लोन लेकर दीपक को पायलट ट्रेनिंग के लिए साउथ अफ्रीका भेज दिया। दीपक को साउथ अफ्रीका के 43 एयर स्कूल में दाखिला मिल गया। कोर्स पूरा होने के बाद 27 अपैल 2023 को दीपक ने जानी मानी एयरलाइन में बतौर पायलट जॉइन किया। आज उनका सालाना एक करोड़ से ज्यादा का पैकेज है।

दीपक आईआईटी से बीए और उसके बाद पायलट बनकर अब दूसरों को प्रेरणा दे रहे हैं। दीपक बताते है कि करियर के लिए कभी भी फैसले ले सकते हैं, इसमें देर या जल्दबाजी की कोई गुंजाइश नहीं होती। कई लोग तो 40-50 साल की उम्र में कोई दूसरा व्यवसाय अपनाते हैं। वो कहते हैं, ‘मैं सभी छोटे भाई-बहनों को यही सलाह देना चाहूंगा कि जो भी करो दिल से करो, सिर्फ डॉक्टर और इंजीनियर ही नहीं सक्सेस होने के और भी कई रास्ते हैं।