Rajasthan Election 2023 : नेहरू की चेतावनी दरकिनार कर चुनाव लड़े हनवंत सिंह जीते, लेकिन नहीं देख पाए जीत

Rajasthan Election 2023 : नेहरू की चेतावनी दरकिनार कर चुनाव लड़े हनवंत सिंह जीते, लेकिन नहीं देख पाए जीत

Hanwant Singh | Sach Bedhadak

Rajasthan Election 2023 : लगभग दो दशक का अंतराल और चुनाव सभा में गूंज उठे दो नारे। एक महाराजा और दूसरी महारानी। यह विचित्र संयोग जुड़ा जोधपुर संसदीय क्षेत्र में। इस चुनाव का ऐतिहासिक महत्व भी लोकतंत्र की तस्वीर में जड़ गया। एक महाराजा अपनी चुनावी जीत का जश्न भी नहीं देख सके। तो महारानी के माथे जोधपुर सीट पर पहली महिला सांसद का ताज सजा। यह जोड़ा था- भारत की पांच बड़ी देशी रियासतों में सम्मिलित जोधपुर राजपरिवार का- जो नौ कोटि मारवाड़ की प्रतीक मानी जाती थी। स्वाधीनता के साथ देशी रियासतों के विलय तथा राजस्थान के एकीकरण के अगुवा सरदार वल्लभाई पटेल भी मानते थे कि जोधपुर उन रियासतों में है जिन्हें वायबल अर्थात सक्षम रियासत माना गया है।

अब लौटते हैं- पहले नारे के उद्घोषक तत्कालीन जोधपुर राज परिवार के महाराजा हनवंत सिंह के चुनावी सफर पर। कम लोगों को इस की जानकारी होगी कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान युवराज हनवंत सिंह देर रात्रि में भेष बदलकर जोधपुर शहर परकोटे में ब्रिटिश विरोधी नारे लिखे पोस्टर चिपकाया करते थे। इसका खुलासा होने पर युवरानी कृष्णा कुमारी ने सफेद और मटमैले कागजी पोस्टर चिपकाने की देशी गोंद तैयार करने की जिम्मेदारी लेकर अपने जीवन साथी का हौंसला बढ़ाया था।

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वर्ष 1952 का प्रथम आम चुनाव-आम जनता लोकतंत्र के इस पहले उत्सव के प्रति उत्सुक थी। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने भरतपुर में आयोजित आमसभा में राजाओं और महाराजाओं को चुनावों से दूर रहने की चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे ऐसा करने का प्रयास करेंगे तो उन्हें अपने विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा। पूर्वी राजस्थान से नेहरू की इस धमकी से कई राजपरिवार सहम गए और चुनाव से तौबा कर ली। लेकिन पश्चिमी राजस्थान से इस चुनौती का जवाब 6 दिसम्बर 1951 को हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हनवंत सिंह के बयान से दिया गया।

राजाओं को सक्रिय राजनीति में शामिल होने से कोई नहीं रोक सकता। हमे विशेषाधिकारों के बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं। जब रियासतें ही देश के नक्शे से मिटा दी गई हैं तो ये विशेषाधिकार खोखले वादे है। पूर्व राजाओं के पास एक ही रास्ता है- वो प्रजातंत्र के अनुसार अपने को साबित करें। लोगों के सेवक बनकर उनके दिल में घर बनाएं। एक दिखावटी जिंदगी जीने से बेहतर है कि वो देश की मुख्य धारा में जुड़ें।

जोधपुर के प्रमुख कांग्रेस नेता जयनारायण व्यास ने 26 अप्रैल 1951 को राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। व्यास ने प्रथम आम चुनाव में विधानसभा के मारवाड़ क्षेत्र की 35 सीटों पर चुनावी तालमेल के लिए महाराजा हनवंत सिंह से चर्चा की। महाराजा ने आधी सीटों की मांग रखी- कांग्रेस ने दस में एक सीट यानि साढे तीन या चार सीट। नतीजतन चुनावी आमना सामना। हनवंत सिंह ने अपने समर्थकों को थार मरुस्थल के प्रतीक ऊंट चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतारा। स्वयं लोकसभा सीट के साथ जोधपुर ‘बी’ क्षेत्र से हमवंत सिंह ने पर्चा भरा। व्यास का महाराजा को चुनाव से परे रहने का अनुरोध व्यर्थ गया। यही नहीं जालोर के आहोर निर्वाचन क्षेत्र से व्यास के सामने माधोसिंह को खड़ा किया गया।

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“मैं थासूं दर नहीं” नारे से बदल गई थी कहानी

अब कहानी की शुरुआत के प्रथम नारे का परिदृश्य निहारें- जोधपुर में गिरदीकोट घंटाघर के मैदान में 1 दिसंबर 1951 की सर्दी उत्साही भीड़ की गर्मजोशी से छू मंतर हो गई। भरतपुर की सभा में नेहरू के भाषण पर हनवंत सिंह की गर्जना लाजवाब थी- मेरे लिए प्रिवीपर्स का क्या मोल। मेरे पास तो आप लोग हो, अनमोल प्रिवीपर्स। और समवेत स्वरों में गिरदीकोट गूंज उठा। ऐसे आत्मीय क्षणों में हनुवंत सिंह का उदघोष- “मैं थासूं दूर नहीं” जनमानस के दिलो-दिमाग में घर कर गया। मतदाताओं ने महाराजा समर्थकों की मतपेटी अपने वोट से भर दी।

कांग्रेस प्रत्याशियों का हाल-बेहाल था। स्वयं जयनारायण व्यास जोधपुर एवं आंतोर से पराजित हुए। बाद में किशनगढ़ से उपचुनाव जीतकर मुख्यमंत्री पद बरकरार रखने की मजबूरी आ गई। इधर चुनाव परिणामों की घोषणा के दौरान हनवंतसिंह का विमान दुर्घटना में निधन हो गया। वह 26 जनवरी 1952 की शाम थी।

गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार