सपा और सुभासपा में दरार! ओपी राजभर और अखिलेश यादव में जुबानी जंग, क्या चुनाव तक ही चलता है सपा का गठबंधन?

समाजवादी पार्टी और सुभासपा यानी ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी में अब रार खुल कर सामने लगी है। इसकी सुगबुगाहट को उत्तर प्रदेश…

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समाजवादी पार्टी और सुभासपा यानी ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी में अब रार खुल कर सामने लगी है। इसकी सुगबुगाहट को उत्तर प्रदेश के विधानसभा परिषद के चुनाव परिणाम से ही आने लग गई थी। लेकिन हाल ही में हुए प्रदेश की दो सीटों पर लोकसभा उपचुनाव के परिणामों से तो अंदरखाने की बात जनता के सामने आने लग गई। महान दल ने तो पहले ही सपा का साथ छोड़ दिया है। अब सुभासपा भी गठबंधन से बाहर आने का मन बनाती दिखाई दे रही है। सियासी पटल पर होती इस उठापटक को देखकर लगता है कि क्या सपा सिर्फ चुनावों के मतलब के लिए क्षेत्रीय और समाज विशेष के राजनीतिक दलों से गठबंधन करती है? क्योंकि इसकी बानगी 2017 के विधानसभा में कांग्रेस और सपा के गठबंधन में देखा जा चुका है।

यशवंत सिन्हा का आगमन….बैठक में नहीं बुलाए गए ओपी राजभर

राष्ट्रपति पद के विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा कल यानी गुरूवार को लखनऊ आए। जिनके आगमन पर सपा की ओर से विधायकों की बैठक बुलाई गई थी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस बैठक में ओमप्रकाश राजभर और उनकी पार्टी के 6 विधायकों में से किसी को नहीं बुलाया गया। इसे लेकर ओपी राजभर ने अपनी नाराजगी जताई और तीखे अंदाज में कहा कि शायद अखिलेश यादव को हमारी जरूरत नहीं इसलिए हमें नहीं बुलाया। ओमप्रकाश राजभर ने इसके बाद अखिलेश को चुनौती देते हुए कहा कि राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को अखिलेश, शिवपाल यादव के वोट दिलवा कर दिखाएं। वहीं राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन को लेकर राजभर ने कहा कि पहले तो सपा ने विधायकों की बैठक बुलाकर फैसला लेने के लिए कहा था। लेकिन अब लगता है कि उन्हें हमारी कोई जरूरत नहीं है, हमें बैठक में नहीं बुलाया गया, बुलाया नहीं गया तो वहां क्यों जाएं, अब हम उनके फैसले का इंतजार कर रहे हैं।   

‘यशवंत सिन्हा को शिवपाल यादव का वोट दिलवा कर दिखाएं’

सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव की तरफ इशारा करके उन्हें चुनौती दी है, कि राष्ट्रपति चुनाव के विपक्ष उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को शिवपाल यादव के वोट दिलवा के दिखाएं…अगर वो अपने आपको बड़ा नेता मानते हैं। राजभर की इस खुली चुनौती से यह तो साफ दिख रहा है कि सपा और सुभासपा में सब कुछ ठीक नहीं है। अगर नहीं तो यह सपा के लिए चिंता की बात होगी। क्योंकि हाल ही में महान दल ने सपा के साथ अपना नाता तोड़ लिया है, औऱ गठबंधन से बाहर हो गई है। अब ओमप्रकाश राजभर के बगावती सुर देखकर यह लगता है कि शायद ही यह गठबंधन आगे चल पाएगा।

आखिर क्यों आई है सपा-सुभासपा में दरार

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कई छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन किया था। इसके साथ ही ओमप्रकाश राजभर ने सत्तारूढ़ भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया था। जिसके बाद उन्होंने औऱ सपा से अपनी पार्टी का गठबंधन किया था। एक वक्त भी ऐसा भी आय़ा था जब ओमप्रकाश राजभर ने सपा के लिए कहा था कि अगर विधानसभा चुनाव में सपा हमें एक भी सीट नहीं देती तो भी वे समाजवादी पार्टी के साथ ही रहेंगे। विधानसभा चुनाव हुए सपा को 111 सीटों पर जीत मिली वहीं सुभासपा को 6 सीटें मिली थीं।  यानि ओमप्रकाश राजभर से गठबंधन का पूरा फायदा सपा ने उठाया। लेकिन हाल ही में हुए विधान परिषद और लोकसभा उपचुनाव में मिली सपा गठबंधन को मिली करारी शिकस्त के बाद से दोनों पार्टियों के बीच तल्खी बढ़ गई है। वे एक-दूसरे पर हार की ठीकरा फोड़ रहे हैं। राजभर का कहना है कि लोकसभा उपचुनाव और विधान परिषद के चुनाव में जमीन पर सिर्फ सुभासपा का कमांडर ( ओमप्रकाश राजभर ) था। सपा का कमांडर ( अखिलेश यादव ) तो एसी कमरों में बैठकर रणनीतियां बना रहे थे। जिसका अंजाम हमें हार के रूप में देखने को मिल गया है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि 2022 के विधानसभा के बाद अखिलेश यादव ने कोई सबक नहीं लिया है।

अखिलेश यादव ने किया पलटवार कहा- उन्हें किसी की सलाह की जरूरत नहीं

ओपी राजभर के इस बयान के बाद अखिलेश यादव ने उन पर पलटवार किया, और कहा कि उन्हें पता है कि कब क्या करना है, उन्हें किसी की सलाह की जरूरत नहीं है। अखिलेश यादव के इस तरह के तेवर देखकर तो यहा कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में कभी भी इस गठबंधन का अंतिम वक्त आ सकता है।

‘यूपी के लड़कों की टूटी थी जोड़ी

इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में भी इस तरह का माजरा देखने को मिल चुका है। तब कांग्रेस और सपा ने गठबंधन किया था। औऱ राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी को यूपी के लड़कों की जोड़ी कहा गया था। लेकिन चुनाव हारने के बाद इन यूपी के लड़कों  की जोड़ी टूट गई थी। इसलिए ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि, क्या सपा का गठबंधन सिर्फ चुनावों तक ही सीमित रहता है।   

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