क्या दुनिया के एक नई मुसीबत लेकर आएगा शी जिनपिंग का तीसरा कार्यकाल ?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक बार फिर सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए हैं। इस तरह से वे चीन के सर्वोच्च नेता के…

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक बार फिर सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए हैं। इस तरह से वे चीन के सर्वोच्च नेता के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल को आगे बढ़ाएंगे। शी जिनपिंग के एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने से यह बहस छिड़ गई है कि अब दुनिया को व्यापार, सुरक्षा और ह्यूमन राइट्स के मुद्दों पर और भी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञों का कहना है कि शी जिनपिंग जिस तरह से चीन में सख्त नियंत्रण रख रहे हैं और दूसरे देशों में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए आर्थिक कूटनीति का सहारा ले रहे हैं। उससे इन मुद्दों के हालात और कितने ज्यादा खराब हो सकते हैं इसका उदाहरण हम नेपाल और श्रीलंका के आर्थिक हालातों से समझ सकते हैं।

कई मुद्दों पर बढ़ सकता है विश्व में असंतुलन

इन बातों को नकारा नहीं जा सकता कि आज श्रीलंका की जो आर्थिक स्थिति हुई है उसमें चीन का बहुत बड़ा हाथ है। श्रीलंका ही नहीं न जाने कितने और देशों में चीन ने अपनी आर्थिक ताकत के जरिए उस देश को एक तरह से अपने ऊपर निर्भर कर रखा है। जिससे अगर उस देश को सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम मिलते भी हैं तो दोनों ही स्थिति में फायदा चीन को होगा। अमेरिका तो हमेशा से चीन पर आरोप लगाता आया है कि चीन ने उसके गठबंधन, वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक नियमों को हमेशा कमजोर करने की ही कोशिश की है। तो ह्यूमन राइट्स को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी चीन पर कई बार आरोप लगाए हैं कि वहां की सरकार उइगर मुसलमानों का जिस तरह से उत्पीड़न कर रही है और इन आलोचनाओं से भी बचने के लिए वह मानवाधिकारों को बदलने की ही कोशिश कर रही है।

यह तो साफ है कि चीन किसी इंसानियत को समझता है ना ही किसी मानवाधिकार को। हमें यहां पर शी जिनपिंग के उस वक्तव्य को भी नहीं भूलना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था की विश्व की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो रही है। जिसका सिर्फ एक इलाज चीन है। वह जितना ज्यादा चीन और चीन की संस्कृति को वैश्विक मॉडल बनाकर पेश करेंगे, कोल्ड वॉर की तरह उतना ही संघर्ष और ज्यादा बढ़ेगा।

जिनपिंग की स्थाई समिति में न एक भी युवा, न ही महिला

शी जिनपिंग की केंद्रीय समिति में 24 सदस्य पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए हैं। आपको बता दें कि इसके सारे सदस्य पुरुष हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि 25 सालों में किसी महिला को इस ब्यूरो का सदस्य नहीं बनाया गया है। तो वहीं विदेश मंत्री वांग यी पोलित ब्यूरो के सदस्य बनाए गए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि वांग यी 68 साल की उम्र को पार कर चुके हैं। आपको यहां एक बात बतानी और जरूरी है कि शी जिनपिंग से पहले स्थाई समिति में युवा सदस्यों सदस्यों को शामिल किया जाता था। ताकि आने वाले समय में वे उच्च पदों के लिए दावेदारी हासिल कर सकें। लेकिन इस बार कि समिति में सबसे कम उम्र का सदस्य 60 साल का है। जिससे यह तो साफ है कि शी जिनपिंग फिलहाल इस पद पर जमे रहने के मूड में है।

शी जिनपिंग की केंद्रीय स्थाई समिति में दो अधिकारियों का कद घटाया जाना भी चर्चा का विषय बन रहा है। हू चुन्हुआ चीन के उपराष्ट्रपति हैं, एक वक्त था कि उन्हें चीन की राजनीति का सर्वोच्च पद का दावेदार माने जा रहा था। लेकिन अब वे पोलित ब्यूरो के सदस्य भी नहीं हैं। तो वही शिनजियांग के पार्टी सचिव चेन क्वांगुओ को भी केंद्रीय समिति से बाहर कर दिया गया है।

फिर से चीन के सामने हाथ फैलाता ‘भाई’

दूसरी तरफ चीन का भाई माने जाने वाला पाकिस्तान इस समय अरबों डॉलर के कर्ज में फंसा हुआ है। अब उसने एक बार फिर वित्तीय मदद के लिए चीन के सामने हाथ फैलाया है। पाकिस्तान ने चीन से 6.3 अरब डॉलर के कर्ज चुकाने की समय सीमा को बढ़ाने की मांग की है। एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार की खबर के मुताबिक पाकिस्तान में चीन के राजदूत नोंग रोंग और वित्त मंत्री मोहम्मद इशाक डार के बीच बीते शनिवार को एक बैठक हुई थी। जिसमें इस 6.3 अरब डॉलर के लोन के रोल ओवर पर चर्चा हुई थी। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के मुताबिक इस लोन को चुकाने की मियाद अगले साल पूरी हो रही है। लेकिन पाकिस्तान इस लोन को अभी चुकाने की हालत में नहीं है। इसलिए उसने चीन से इस कर्ज को चुकाने की समय सीमा को बढ़ाने की मांग की है।

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