Bismillah Khan Death Anniversary : अपनी शहनाई से काशी विश्वनाथ को जगाते थे उस्ताद बिस्मिल्लाह, जानिए उनसे जुड़े कुछ अनकहे किस्से

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम जब जुबान पर आता है तो तो उनके नाम मात्र से ही कानों में शहनाई की मीठे सुर कानों में…

| Sach Bedhadak

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम जब जुबान पर आता है तो तो उनके नाम मात्र से ही कानों में शहनाई की मीठे सुर कानों में घुलने लगते है। बिस्मिल्लाह खान ने अपनी शहनाई के दम पर सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में धाक जमाई। बिस्मिल्लाह खान के कुछ अनकहे किस्सों के बारे में बताएंगे।

दूरदर्शन और आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून

आपने दूरदर्शन और आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून तो सुनी ही होगी। इस ट्यून की आवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह की शहनाई की है। लेकिन क्या आपको पता है की उस्ताद ने सप्ताह के सात दिनों के लिए अलग अलग राग तैयार किए थे। जिन्हें चैनल पर प्रसारण शुरू होने से पहले इन धुनों को बजाया जाता था।

उस्ताद के दादा ने दिया बिस्मिल्लाह नाम

बिस्मिल्लाह खान का जब जन्म हुआ था। तो उनके दादा राज दरबार में शहनाई बजाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन जन्म होते ही जैसे ही उनके दादा ने उस्ताद के रोने की आवाज सुनी वैसे ही उनके मुंह से निकला बिस्मिल्लाह, तो उनका नाम बिस्मिल्लाह ही पड़ गया।

देश की आजादी की पूर्व संध्या का उस्ताद की शहनाई ने किया स्वागत

15 अगस्त 1947 यानी जिस दिन देश आजाद हुआ था उसकी पूर्व संध्या पर लाल किले पर पहली बार तिरंगा लहराया गया था। और इस पल का स्वागत किया था उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई ने। सदियों से आजादी का इंतजार कर रहे देश के इस ऐतिहासिक पल को यादगार बनाने के लिए खुद जवाहर लाल नेहरू ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को बुलाया था। इसके बाद तो हर स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण के बाद उस्ताद का शहनाई बजाना एक प्रथा बन गई थी।

अपनी शहनाई की धुन से काशी विश्वनाथ को जगाते थे बिस्मिलाह खान

बिस्मिल्लाह खान जब तक बनारस में रहे, वहां की मूल संस्कृति को नहीं भूले, काशी विश्वनाथ की नगरी कहा जाने वाले बनारस उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की पहचान बन चुका था। उस्ताद की सुबह तब होती थी जब वे अपनी शहनाई बजाकर काशी विश्वनाथ को जगाते थे।

शहनाई थी दूसरी बेगम

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का अपनी शहनाई से इतना गहरा लगाव था की से उसे अपनी दूसरी बेगम कहते थे। उस्ताद की जब मृत्यु हुई तो उनके साथ इस शहनाई को भी दफनाया गया। जिसने पूरी उम्र भर उनका साथ निभाया था।

देश ही नहीं पूरी दुनिया को बनाया मुरीद

बिस्मिल्लाह खान पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें अमेरिका के लिंकन सेंटर हॉल में शहनाई बजाने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने वहां अपनी शहनाई को जो प्रदर्शन किया उसे आज तक भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने ईरान, इराक, जापान, कनाडा और न जाने कितने देशों में अपनी शहनाई से लोगों का दिल जीता, और बेशुमार मान सम्मान पाया।

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