Rajasthan Election : चुनावी रण में रोमांचक बनी 2 धर्मगुरुओं की राजनीतिक साधना, ये रहा पिछले चुनावों का हाल

राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार अलग अलग धर्मों के चार धर्मगुरू व महंत भी चुनावी मैदान में हैं। राजनीति में संतों के दखल पर चाहे जितनी बहस इस बार इन संतों के कारण चुनाव खासा रोमांचक हो गया है।

Pratap Puri ji Maharaj-Saleh Mohammad

Rajasthan Election : जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार अलग अलग धर्मों के चार धर्मगुरू व महंत भी चुनावी मैदान में हैं। राजनीति में संतों के दखल पर चाहे जितनी बहस इस बार इन संतों के कारण चुनाव खासा रोमांचक हो गया है। तिजारा से महंत बालकनाथ और जयपुर में हवामहल से बालमुकुंदाचार्य के चलते ये दोनों सीटें हॉट सीट बनी हुई हैं। इसके साथ ही दो धर्मगुरु महंत प्रतापपुरी व सालेह मोहम्मद पोकरण सीट पर आमने सामने हैं।

सालेह मोहम्मद वर्तमान में इस सीट से विधायक व राज्य सरकार में मंत्री हैं। पिछले चुनाव में वे महंत प्रतापपुरी को ही हराकर विधायक बने थे, हालांकि वोटों का अंतर मात्र 872 का था जिसके चलते भाजपा ने इस बार भी प्रतापपुरी को मैदान में उतारा है।

सालेह मोहम्मद सिंधी मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु गाजी फकीर के पुत्र हैं। अपने पिता की मृत्यु के बाद वह अब पाकिस्तान में सिंधी मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख पीर पगारो के प्रतिनिधि हैं। बात करें प्रतापपुरी की तो वे बाड़मेर इलाके में सक्रिय तारातारा मठ के महंत हैं और इस क्षेत्र में उनके काफी अनुयायी हैं।

कांग्रेस की घोषणाएं कागजी: प्रतापपुरी

इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार एवं महंत स्वामी प्रताप पुरी जोर देकर कहते हैं कि विकास कार्यों पर कांग्स पा रे र्टी के दावे मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले की गई घोषणाएं हैं।

पुरी का कहना है कि मैं पिछले पांच वर्षों से लोगों से जुड़ा हुआ हूं। कांग्स अपने काम की रे बात तो कर रही है लेकिन उनमें से ज्यादातर सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित हैं और चुनाव से ठीक पहले की गई घोषणाएं केवल लोगों को लुभाने का प्रयास भर हैं। उनका कहना है कि कांग्स सरकार काम तो रे शुरू करती है लेकिन वह काम पूरा होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

सालेह नहीं मानते धर्म को बड़ा मुद्दा

कांग्रेस के मौजूदा विधायक सालेह मोहम्मद को उम्मीद है कि लोग उनके विकास कार्यों के लिए वोट करेंगे, न कि धार्मिक आधार पर। सालेह मोहम्मद का कहना है कि इस बार चुनाव विकास के बारे में है। कांग्रेस सरकार ने ऐतिहासिक विकास कार्य किए हैं और धर्म कोई मुद्दा नहीं है।

चुनाव में हिंदू-मुस्लिम कोई कारक नहीं है। उनका कहना है कि उनके या सरकार के खिलाफ कोई ‘सत्ता विरोधी लहर’ नहीं है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सालेह का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के बड़े बड़े नेता प्रचार के लिए आएंगे तो धर्म के आधार पर भाषण देंगे, लेकिन इसका अब लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

धार्मिक ध्रुवीकरण अहम, पर विकास के नाम पर भी पड़ेंगे वोट

राजस्थान के सीमावर्ती जिले जैसलमेर में स्थित पोकरण निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 2.22 लाख मतदाता हैं जिनमें से अधिकांश मुस्लिम या राजपूत हैं। यहां करीब 60 हजार मुस्लिम, 40 हजार राजपूत, 35 हजार अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति, 10 हजार जाट, 6 हजार बिश्नोई, 5 हजार माली और 3 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। वैसे तो दोनों नेता अपने धार्मिक वोट बैंकों पर भरोसा कर रहे हैं जबकि अन्य समुदायों का समर्थन उम्मीदवारों का भाग्य तय कर सकता है।

स्थानीय मुद्दे और पिछले पांच वर्षों में लोगों के साथ नेताओं के व्यक्तिगत संबंध भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पोकरण के स्थानीय निवासी जाकिर खान का कहना है कि निस्संदेह, निर्वाचन क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में विकास कार्य हुए हैं। लेकिन ऐसे भी उदाहरण रहे जब विधायक ने अपने समुदाय के लोगों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन दूसरों के लिए काम किया। एक अन्य स्थानीय निवासी अकबर खान का कहना है कि लोग धार्मिक आधार पर वोट करते हैं लेकिन हमेशा धर्म पर वोट नहीं दिये जाते है। जब मतदान की बात आती है तो समाज के मुद्दे और लोगों से जुड़ाव भी मायने रखता है।

वहीं चाय विक्रेता मनोहर सिंह का कहना है कि यह बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच स्पष्ट लड़ाई है। हिंदू भाजपा को वोट देंगे जबकि मुस्लिम कांग्रेस को वोट देंगे। अन्य समुदाय परिणाम तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक मनोहर जोशी का कहना है कि क्षेत्र में चुनाव आमतौर पर सिर्फ उम्मीदवारों के प्रदर्शन के बारे में नहीं होते हैं।

उन्होंने कहा कि पोकरण को कॉलेज मिले हैं, गांवों के लिए बेहतर सड़क संपर्क, एक बेहतर जिला अस्पताल, एक परिवहन पंजीकरण कार्यालय और अन्य चीजें मिली हैं। उनका मानना है कि यहां लोग अपने धर्म के आधार पर वोट देते हैं और बाकी सब चीजें पीछे रह जाती हैं। पिछले वर्षों के विपरीत इस बार कांग्रेस सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर कम है लेकिन चूंकि दोनों उम्मीदवार धार्मिक नेता हैं, इसलिए वोट उसी आधार पर विभाजित होंगे।

ये रहा है पिछले चुनावों का हाल

पोकरण में पिछले तीन चुनावों में से दो में कांटे की टक्कर रही है। 2008 में सालेह मोहम्मद ने भाजपा के शैतान सिंह को 339 वोटों से हराया था। परिसीमन प्रक्रिया के बाद यह सीट 2008 में अस्तित्व में आई। वहीं 2013 के चुनाव में सिंह ने सालेह मोहम्मद को 34 हजार 444 मतों के भारी अंतर से हराया। 2018 में जब भाजपा ने पुरी को मैदान में उतारा तो वह मोहम्मद से महज 872 वोटों से हार गए।

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