जयपुर में जीवंत हुई लखनऊ के कथक घराने की नजाकत, विदूषी रश्मि उप्पल के नृत्य से छलकी कबीर की निर्गुण भक्ति की धारा

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में बुधवार को बही सितार की मधुर झनकार और कथक नृत्य की लय, ताल और भावों के मंजर ने वहां मौजूद…

The delicacy of Lucknow's Kathak Gharana came alive in Jaipur, the dance of Vidushi Rashmi Uppal overflowed with Kabir's nirguna bhakti

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में बुधवार को बही सितार की मधुर झनकार और कथक नृत्य की लय, ताल और भावों के मंजर ने वहां मौजूद नृत्य प्रेमियों का दिल जीत लिया। मौका था कथक नृत्य को समर्पित संस्था ‘नित्यम’ की ओर से आयोजित समारोह का। इस मौके पर कथक के लखनऊ घराने की गुरु विदूषी रश्मि उप्पल ने जहां अपने नृत्य से कबीर की निगुण भक्ति की रसधारा प्रवाहित की, वहीं संगीत गुरू पं. चंद्र मोहन भट्ट की शिष्याओं भव्या दुसाद, रिया वर्मा और श्रेया सिपानी ने राग हमीर में सितार की मधुर झनकार से अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन किया।

चला जयपुर और लखनऊ घराने का जादू 

करीब दो घंटे से भी अधिक चले इस समारोह में जयपुर घराने नृत्य गुरु पंडित गिरधारी महाराज की शिष्या वर्तिका तिवारी और रश्मि उप्पल की शिष्य मंडली ने दोनों घरानों की शैलीगत विशेषताओं से जमकर दाद बटोरी।

अर्थवान इशारों ने नृत्य को किया सार्थक 

समारोह का मुख्य आकर्षण रश्मि उप्पल की नृत्य रचना रही। उन्होंने कबीर की निर्गुण भक्ति में रची-बसी रचना में प्रेम के अनूठे रंगों को अपनी मोहक आंगिक भाव भंगिमाओं से इस अंदाज में जीवंत किया कि नृत्य देखने वाले हर शख्स ने खुद को प्रेम रस में पगा हुआ महसूस किया। ‘मेरे साहिब हैं रंगरेज, चुनर मोरी रंग डारी। सियाही रंग छुड़ाने के रे, दिया मजीठा रंग, धोए से छूटे नहीं रे, दिन दिन होत सुरंग’ जैसे दिलकश भावों से रची यह रचना तीन ताल सोलह मात्रा में निबद्ध थी। इस दौरान रश्मि के अक्स पर बंदिश के छिपे भावों के अनुरूप हर पल बदलते भावों और हाथों के अर्थवान इशारों ने नृत्य रचना को सार्थक कर दिया।

गूंजी सितार की मधुर झनकार 

इस मौके पर संगीत गुरू पं. चंद्रमोहन भट्ट की शिष्याओं भव्या दुसाद, रिया वर्मा और श्रेया सिपानी ने राग हमीर में पहले विलंबित लय में राग वाचक सुरों की इमारत खड़ी की। उसके बाद में द्रुत लय और झाले की प्रस्तुति में सुरों को एक शिल्पी की भांति गढ़ते हुए विलंबित में खड़ी की गई सुरों की इमारत पर मानों नक्काशी करके उसे और भी भव्य बना दिया।

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