Indelible ink : बाएं हाथ में क्यों लगाई जाती है इलेक्शन इंक, आखिर-कहां और कैसे बनती है ये…जानें-चुनावी स्याही का अमिट फार्मूला

नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े लोकतंत्र त्योहार की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। आज के बदलते आधुनिक युग में हर चीज में बदलाव…

election indelible ink chemical formula | Sach Bedhadak

नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े लोकतंत्र त्योहार की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। आज के बदलते आधुनिक युग में हर चीज में बदलाव आए है। जैसे वोटिंग के लिए मतपेटी की जगह ईवीएम मशीन ने ले ली। लेकिन, एक ऐसी चीज है दशकों से वैसी की वैसी ही रही है। वो भारत में होने वाले हर चुनाव में बहुत मायने रखती है। हम बात कर रहे हैं इलेक्शन इंक की। वो ही इंक जो इस बात का प्रतीक होती है कि किसी व्यक्ति ने अपना वोट किया है या नहीं। इस इलेक्शन इंक की सबसे खास बात है कि ये आसानी से मिटती नहीं है। पानी से बार-बार धोने पर भी यह कुछ दिनों तक बनी रहती है। लेकिन ये ऐसी क्यों है? इसे समझने के लिए ये जानना होगा कि चुनावी स्याही बनाने की नौबत ही क्यों आई। इस इंक को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं। इलेक्शन इंक से जुड़े कुछ सवालों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

क्यों बाएं हाथ की पहली उंगली पर लगाई जाती इंक

जब भी आप वोट देने जाता है तो वोटिंग अधिकारी सबसे पहले आपके हाथ पर इलेक्शन इंक लगाता है। ये इंक आपके बाएं हाथ की पहली उंगली पर लगाई जाती है। वोट देने के साथ ही चुनाव अधिकारी नीले रंग की स्याही वोटर की उंगली पर लगा देता है। इस इंक लगाने से यह सुनिश्चित होता है कि एक व्यक्ति एक से ज्यादा बार वोट नहीं दे सकता। क्योंकि ये आसान से मिटती नहीं, इसलिए इसे इंडेलिबल इंक भी कहते हैं। आखिर इस स्याही में ऐसा क्या है जो लगने के बाद ये आसानी से नहीं मिटती? ये स्याही कहां और कैसे बनती है, आइए इसके बारे में जानते हैं।

कहां बनती है इलेक्शन इंक?

हर चुनाव में काम में ली जाने वाली इलेक्शन इंक को मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम की कंपनी में बनाई जाती है। यह कंपनी कर्नाटक में स्थित है। एमवीपीएल कंपनी की स्थापना 1937 में उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने की थी। देश में इलेक्शन इंक बनाने का लाइसेंस केवल इसी कंपनी के पास है। वैसे तो यह कंपनी और भी कई तरह के पेंट बनाती है लेकिन इसकी मुख्य पहचान चुनावी स्याही बनाने के लिए ही है।

पहली बार साल 1962 के चुनाव से इस स्याही का इस्तेमाल किया गया था। नीले रंग की इस इंक को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है। एमवीपीएल कंपनी इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है। केवल सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्लाई की जाती है।

क्यों बनाई इलेक्शन इंक?

इस खास स्याही को बनाने का काम 1950 के दशक में शुरू हुआ था। इसे बनाने का मकसद फर्जी मतदान को रोकना था। इस पहल में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च CSIR के वैज्ञानिकों ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी (CSIR -NPL) में अमिट स्याही का फॉर्मूला 1952 में इजाद किया। बाद में इसे नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NRDC) ने पेटेंट करा लिया।

क्यों नहीं मिटती है चुनावी इंक?

चुनावी इंक बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। सिल्वर नाइट्रेट इसलिए चुना गया क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है। जब चुनाव अधिकारी वोटर की उंगली पर नीली स्याही लगाता है तो सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है, जो काले रंग को होता है। बता दें कि सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलता नहीं है और त्वचा से जुड़ा रहता है। इसे साबुन से भी धोया नहीं जा सकता। रोशनी के संपर्क में आने से यह निशान और गहरा हो जाता है। चुनावी स्याही का रिएक्शन इतनी तेजी से होता है कि उंगली पर लगने के एक सेकेंड के भीतर यह अपना निशान छोड़ देता है। क्योंकि इसमें एल्कोहल भी होती है, इसलिए 40 सेकेंड से भी कम समय में यह सूख जाती है।

चुनावी स्याही का निशान तभी मिटता है जब धीरे-धीरे त्वचा के सेल पुराने होते जाते हैं और वे उतरने लगते हैं। यह स्याही आमतौर पर 2 दिन से लेकर 1 महीने तक त्वचा पर बनी रहती है। इंसान के शरीर के तापमान और वातावरण के हिसाब से स्याही के मिटने का समय अलग-अलग हो सकता है।

दुनियाभर में होती है इलेक्शन इंक की सप्लाई

चुनाव में इंक को 10 मिलीलीटर की लाखों बोतलों में भरकर मतदान केंद्र पर भेजा जाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दर्जनभर देशों में होता है। mygov की रिपोर्ट के मुताबिक, मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड की खास इंक 25 से ज्यादा देशों में सप्लाई की जाती है। इनमें कनाडा, घाना, नाइजीरिया, मंगोलिया, मलेशिया, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और मालदीव शामिल हैं।

क्योंकि विभिन्न देश स्याही लगाने के लिए अलग-अलग तरीकों का पालन करते हैं, इसलिए कंपनी ग्राहक के अनुसार स्याही की आपूर्ति करती है। उदाहरण के लिए, कंबोडिया और मालदीव में मतदाताओं को स्याही में अपनी उंगली डुबोनी पड़ती है जबकि बुर्किना फासो में स्याही को ब्रश से लगाया जाता है। यह स्याही फोटो सेंसिटिव है, इसलिए इसे सीधे सूरज की किरणों के संपर्क से बचाया जाता है। इसी वजह से स्याही को एम्बर रंग के प्लास्टिक कंटेनर में स्टोर किया जाता है।