टांगीनाथ धाम में गड़ा है भगवान परशुराम का फरसा, रांची से करीब 150 किमी दूर है यह स्थान

झारखंड में रांची से करीब 150 किमी की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टांगीनाथ धाम के बारे में मशहूर है कि यहां भगवान विष्णु…

Lord Parshuram's ax is buried in Tanginath Dham

झारखंड में रांची से करीब 150 किमी की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टांगीनाथ धाम के बारे में मशहूर है कि यहां भगवान विष्णु के छठे आवेशावतार भगवान परशुराम का फरसा गड़ा हुआ है। परशुराम महान तपस्वी योद्धा, कर्ण, भीष्म पितामह के गुरु और सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। उनका जिक्र रामायण में भी आता है और महाभारत में भी। वे शस्त्र के साथ ही शास्त्र के भी विशेषज्ञ हैं। परशुराम धनुर्विद्या के ज्ञाता हैं, लेकिन फरसा उनका प्रिय शस्त्र है। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान के कलि अवतार को शिक्षा-दीक्षा और शस्त्र संचालन का दायित्व भी इनको ही संभालना है।

हजारों वर्षों से बिना किसी देखभाल गड़ा है फरसा, नहीं लगती जंग 

यह फरसा यहां हजारों वर्षों से बिना किसी देखभाल के गड़ा हुआ है, लेकिन आज तक इस पर जंग नहीं लगा है। लोगों का कहना है कि फरसा भूमि में कितना गड़ा हुआ है, यह कोई नहीं जानता। हालांकि लोग यह अनुमान भी लगाते हैं कि फरसा करीब 17 फीट जमीन के अंदर धंसा हुआ है। इसके बारे में एक कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार इस इलाके में लोहार आकर रहने लगे थे।

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काम के दौरान उन्हें लोहे की जरूरत हुई तो उन्होंने परशुराम का यह फरसा काटने की कोशिश की। काफी कोशिश के बाद भी वे फरसा नहीं काट पाए, लेकिन इसका नतीजा बहुत बुरा हुआ। उस परिवार के सदस्यों की मौत होने लगी। इसके बाद उन्होंने वह इलाका छोड़ दिया। आज भी टांगीनाथ धाम के आस-पास लोहार नहीं रहते। उस घटना का खौफ उनके मन में आज भी ताजा है।

लोगों का विश्वास इस स्थान पर हैं भगवान परशुराम के चरण चिन्ह

यूं तो यह इलाका नक्सल प्रभावित है। यहां स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस जगह का नाम टांगीनाथ धाम हो गया है। इस जगह भगवान परशुराम का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है। यहां परशुराम के चरण चिह्न भी बताए जाते हैं। चूंकि परशुराम महान तपस्वी हैं। उन्होंने तप से अद्भुत सिद्धि और शक्तियां प्राप्त की हैं। इस स्थान से एक अद्भुत कथा भी जुड़ी हुई है। जब माता सीताजी के स्वयंवर में भगवान श्री रामचंद्र ने भगवान शिव शंकर का धनुष तोड़ दिया था, तब भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और स्वयंवर स्थल पर आ गए।

उस दौरान प्रभु श्रीराम शांत रहे, लेकिन लक्ष्मण से परशुराम का विवाद होने लगा। बहस के बीच जब परशुराम को यह जानकारी होती है कि श्रीराम स्वयं परमेश्वर के अवतार हैं तो उन्हें इस बात का दुख होता है कि उन्होंने उनके लिए कटु वचनों का प्रयोग किया। स्वयंवर स्थल से परशुराम भगवान जंगलों में चले जाते हैं। यहां वे अपना फरसा भूमि में गाड़ देते हैं और भगवान शिव की स्थापना कर आराधना करते हैं। यहां वे तपस्या करने लगते हैं। उसी जगह पर टांगीनाथ धाम स्थित है। लोगों का विश्वास है कि भगवान परशुरामजी का वही फरसा आज भी यहां गड़ा हुआ है।

केदारनाथ धाम जैसी है स्थापत्य कला 

टांगीनाथ धाम में प्राचीन मंदिर व शिवलिंग के अवशेष हैं। यहां की स्थापत्य कला केदारनाथ धाम जैसे बहुत पुराने मंदिरों से मेल खाती है। बताया जाता है कि एक बार यहां खुदाई भी की गई और उसमें कई कीमती चीजें पाई गई थीं। नक्सल प्रभावित इलाके में स्थित होने के बावजूद टांगीनाथ धाम में श्रद्धालु आते हैं। परशुराम द्वारा भगवान शिव की तपस्या से पूजित यह पवित्र स्थल विशाल फरसे के कारण किसी आश्चर्य से कम नहीं है। 

कहते हैं कि फरसे के अलावा भगवान परशुराम के पदचिह्न आज भी वहां मौजूद हैं। टांगीनाथ धाम में सैकड़ों शिवलिंग और प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं और वो भी खुले आसमान के नीचे। बताया जाता है कि साल 1989 में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई करवाई थी, जिसमें हीरा जड़ित मुकुट और सोने-चांदी के आभूषण समेत कई कीमती वस्तुएं मिली थीं। खुदाई में मिली वस्तुएं आज भी डुमरी थाना के मालखाने में रखी हुई हैं। टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र में फैले हुए अनगिनत अवशेष यह बताने के लिए काफी हैं कि यह क्षेत्र किसी जमाने में हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल रहा होगा।

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