अयोध्या, काशी के बाद अब मथुरा की बारी, कृष्णजन्म या ईदगाह मस्जिद की है भूमि, क्या होगा सर्वे का नतीजा ?

आज मथुरा में कृष्णजन्मभूमि और ईदगाह मस्जिद जमीन मामले में सिविल कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस मामले की विवादित जमीन…

अयोध्या, काशी के बाद अब मथुरा की बारी, कृष्णजन्मभूमि का फैसला जल्द

आज मथुरा में कृष्णजन्मभूमि और ईदगाह मस्जिद जमीन मामले में सिविल कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस मामले की विवादित जमीन का सर्वे कराने के आदेश दिए हैं। यानी अब ASI भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम कृष्णजन्मभूमि और ईदगाह जमीन का सर्वे करेगी और अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी। इसे एक बड़ा फैसला माना जा रहा है क्योंकि यह मसला कई सालों से उलझा हुआ है और अयोध्या, काशी की तरह ही इसका मुद्दा हिंदू और मुस्लिम पक्षों में बेहद गर्म है। इसी के साथ अब चारों तरफ यह चर्चा उठने लगी है कि क्या अब इस सर्वे का नतीजा हिंदुओं की तरफ जाएगा या मुस्लिमों की ओर झुकेगा। क्योंकि अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे यह कह पाना मुश्किल है।

इससे पहले मथुरा अदालत ने पिछली सुनवाई में फिर से जांच कराने की एक याचिका को खारिज कर दिया था। दरअसल अभी तक जो मामले कोर्ट में लंबित हैं वो जन्मभूमि और शाही मस्जिद के बीच हुए समझौते के खिलाफ हैं। याचिका में इस समझौते पर सवाल उठाए गए हैं। याचिका में जन्मभूमि का पूरा क्षेत्रफल मंदिर ट्रस्ट को मिलना चाहिए।

क्या है विवाद

अयोध्या का रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद और वाराणसी का काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा के कृष्णजन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद का मामला सुर्खियों में है। अयोध्या और काशी की तरह ही मथुरा का यह मामला भी जमीन के मालिकाना हक के जुड़ा हुआ है कि जमीन पर अधिकार मंदिर का है या मस्जिद का…। बता दें कि यह जमीन 13.37 एकड़ की है। जिस पर रार छिड़ी है। जमीन के मालिकाना हक  को लेकर मथुरा की कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में इस पूरी 13.37 एकड़ की जमीन पर कृष्णजन्मभूमि को मालिकाना हक देने की मांग की गई है और जन्मभूमि के बराबर में ही बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग उठाई गई है। याचिका का कहना है कि जब इतिहास में यहां सिर्फ मंदिर था तो यहां पर इसके बराबर मस्जिद को अधिकार कैसे मिल सकता है।

यह कहता है इतिहास

दरअसल जह साल 1670 में मंदिर को तुड़वाकर वहां मस्जिद बनाई गई थी उसके बाद साल 1770 में मुगल सेना और मराठा सेना में गोवर्धन क्षेत्र में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठाओं की जीत हुई। इस जीत के बाद मराठाओं ने यहां जन्मभूमि (Shri Krishna Janmbhoomi) क्षेत्र में बनी मस्जिद को तोड़कर फिर से श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण कराया। साल 1935 में इलाहाबाद में हाईकोर्ट ने जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन बनारस के राजा कृष्ण दास को सौंप दी। देश आजाद होने के बाद साल 1951 में देश के बड़े उद्योगपतियों के संघ ने जन्मभूमि परिसर की जमीन खरीदी औऱ वहां पर जन्मभूमि ट्रस्ट का निर्माण किया। संघ ने यहां पर केशवदेव नाम के मंदिर का भी निर्माण कराया।

ट्रस्ट ने दी थी जमीन

बता दें कि संघ में डालमिया, पोद्दार और बिड़ला जैसे लोग शामिल थे। साल 1968, 12 अक्टूबर को श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के बीच भूमि विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों में एक समझौता हुआ था। उस समय ट्रस्ट ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट को मस्जिद के लिए भी जमीन दे दी। लेकिन अब मस्जिद के लिए दी गई 2.5 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद छिड़ गया है। जन्मभूमि पक्षकारों का कहना है कि उन्हें पूरी 13.37 एकड़ जमीन वापस चाहिए ये जन्मभूमि का ही हिस्सा है।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट होगा लागू?

मथुरा के इस मामले में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू होगा या नहीं इसके लिए ASI की टीम सर्वे करेगी और स्थान पर मिलने वाले तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट बनाएगी कि इसके 1991 से पहले के प्रमाण है या नहीं लेकिन अगर इतिहास में जाएं तो इस मंदिर को टूटे सैकड़ों साल हो चुके हैं लेकिन इस मंदिर के स्तंभों के ऊपर ही मस्जिद तानने के प्रमाण कई रिपोर्ट्स में मिले हैं। इस आधार पर इस मामले में प्लेसेस ऑप वर्शिप एक्ट लागू नहीं हो सकता।

अयोध्या मामले में ASI सर्वेक्षण की रिपोर्ट में जन्मभूमि वाली जगह पर मंदिर के ही प्रमाण मिले थे और इस मंदिर के सैकड़ों साल पुराने होने की रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी। लेकिन बाबारी मस्जिद भी इसी मंदिर के ऊपर ही बनाई गई थी। इसलिए अयोध्या मामले में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को दूर ही रखा गया था। काशी के ज्ञानवापी मामले में भी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को शामिल किया गया है। लेकिन इसमें भी मंदिर के 1991 के पहले के होने के प्रमाण मिले हैं। इसलिए यहां भी वर्शिप एक्ट बाहर हो गया था अब यही तथ्य कृष्णजन्मभूमि वाले मामले में भी है।

क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट

साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान एक अधिनियम बना  था। इसका नाम प्‍लेसेस ऑफ वर्शिप अधिनियम था। दोनों सदनों में पास कराकर इसे कानून का रूप दिया गया। इसके अनुसार 15 अगस्‍त 1947 यानी आजादी से पहले अस्तित्‍व में आए किसी भी धार्मिक स्‍थल (पूजा स्थल) को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्‍थल में नहीं बदला जा सकता। वहीं अगर कोई इस एक्ट के नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल के कारावास की सजा होगी। साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान किया गया।

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