क्या है हड्डियों को गला देने वाला फॉस्फोरस बम…जिससे आती है सड़े लहसुन की गंध, इजरायल पर लगा इस्तेमाल का आरोप

Israel-Hamas War: इजराइल और फिलिस्तीन के बीच खतरनाक जंग छिड़ गई है। हमास के आतंकियों ने इजरायल में जो किया उससे पूरी दुनिया हिल गई।…

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Israel-Hamas War: इजराइल और फिलिस्तीन के बीच खतरनाक जंग छिड़ गई है। हमास के आतंकियों ने इजरायल में जो किया उससे पूरी दुनिया हिल गई। छोटे से आतंकी संगठन हमास ने इजरायल में कत्लेआम मचाया है। हमास के आतंकियों ने इजरायल में लोगों को चुन-चुनकर मारा।

हमास के आतंकियों द्वारा इजरायल पर किए गए हमले में 700 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हमास को लेकर शक जताया जा रहा है कि उसे कई बड़ी ताकतें सपोर्ट कर रही हैं, ताकि इजरायल को नुकसान पहुंचाया जा सके। सैकड़ों लोगों को गंवा चुका इजरायल जमकर मुकाबला कर रहा है। इसी बीच फिलिस्तीन ने आरोप लगाया कि इजरायल उसकी घनी आबादी वाले इलाकों पर प्रतिबंधित फॉस्फोरस बम गिरा रहा है। उसने इजरायल को वॉर क्रिमिनल तक कह दिया।

क्या है ये बम, जिसपर इतना हल्ला मचा…

फिलिस्तीन ने इजरायल पर फॉस्फोरस बम गिराने का आरोप लगाया है। दरअसल, वह वाइट फॉस्फोरस बम है, जो सफेद फॉस्फोरस और रबर को मिलाकर तैयार होता है। फॉस्फोरस मोम जैसा केमिकल है, जो हल्का पीला या रंगहीन होता है। इससे सड़े हुए लहसुन जैसी तेज गंध आती है। इस रासायनिक पदार्थ की खूबी ये है कि यह ऑक्सीजन के संपर्क में आते भी आग पकड़ लेता है, और फिर ये पानी से भी बुझाया नहीं जा सकता। यही बात इसे बेहद खतरनाक बनाती है।

ऑक्सीजन को खत्म करने लगता है…

ऑक्सीजन के लिए रिएक्टिव होने की वजह से यह जहां भी गिरता है, उस जगह की सारी ऑक्सीजन तेजी से सोखने लगता है। ऐसे में जो लोग इसकी आग से नहीं जलते, वे दम घुटने से मर जाते हैं। ये तब तक जलता रहता है, जब तक कि पूरी तरह से खत्म न हो जाए। यह पानी डालने पर भी ये आसानी से नहीं बुझता, बल्कि धुएं का गुबार बनाते हुए और भड़कता है।

मल्टी-ऑर्गन फेल्योर का कारण बन सकता है फॉस्फोरस…

फॉस्फोरस बम को लेकर कहा जाता है कि यह 1300 डिग्री सेल्सियस तक जल सकता है। वैज्ञानिक भी इसको लेकर हिदायत देते है कि ये आग से कहीं ज्यादा जलन और जख्म देता है। यहां तक कि ये हड्डियों तक को गला सकता है। कुल मिलाकर इसके संपर्क में आने पर इंसान जिंदा बच भी जाए तो किसी काम का नहीं रह जाएगा। वो लगातार गंभीर संक्रमण का शिकार होता रहेगा और उम्र अपने-आप कम हो जाएगी। कई बार ये त्वचा से होते हुए खून में पहुंच जाता है। इससे हार्ट, किडनी और लिवर सबको नुकसान पहुंचता है, और मरीज में मल्टी-ऑर्गन फेल्योर हो सकता है।

क्या है उपयोग करने का इतिहास…

दूसरे विश्व युद्ध में फॉस्फोरस बम का जमकर उपयोग हुआ था। अमेरिकी सेना ने जर्मनी के खिलाफ खूब बम गिराए। आरोप तो यहां तक है कि उसने सेना के अलावा जान-बूझकर रिहायशी इलाकों पर भी वाइट फॉस्फोरस की बमबारी शुरू कर दी ताकि देश पर दबाव बनाया जा सके।

हमला लगभग परमाणु अटैक जैसा खतरनाक था, जिसकी चर्चा कम हुई। इराक युद्ध में भी अमेरिकन मिलिट्री पर यही आरोप लगा था। ये आसान लेकिन बेहद खौफनाक तरीका है, जिससे दुश्मन देश पर दबाव बनाया जा सकता है।

जेनेवा में लगा प्रतिबंध…

फॉस्फोरस बम से होने वाले खतरों को देखते हुए साल 1980 में जेनेवा कन्वेंशन में इसको लगभग बैन कर दिया है। लगभग प्रतिबंधित यानी कुछ खास वजहों, जगहों पर इसका इस्तेमाल हो सकता है। कन्वेंशन ऑन सर्टेन कन्वेंशनल वेपन (CCW) के तहत जो प्रोटोकॉल बना, उसमें इसके कम से कम उपयोग की बात मानते हुए 115 देशों ने हस्ताक्षर किए।

फॉस्फोरस बम को लेकर क्या हुआ था तय…

फॉस्फोरस बम को लेकर यह तय किया गया कि अगर इस बम का इस्तेमाल रिहायशी इलाकों में हुआ तो इसे केमिकल अटैक माना जाएगा, और देश पर वॉर क्राइम के तहत एक्शन हो सकता है। इसके बाद भी अमेरिकी सेना पर इस बम के गैरजरूरी इस्तेमाल का आरोप लगता रहा। कहा तो यहां तक गया कि अमेरिका चूंकि सबसे ताकतवर देश है इसलिए जानते हुए प्रोटोकॉल में कई कमियां छोड़ दी गईं ताकि वो बेझिझक बम अटैक कर सके।