वैज्ञानिकों का निष्कर्ष, रेडिएशन में कुत्तों ने दी कैंसर को मात

सबसे बड़े परमाणु हादसे के शिकाल चेर्नोबिल में कुत्तों ने कैंसर को मात दे दी। दरअसल, यहां रहने वाले आवारा भूरे भेड़ियों के झुंड में अब एक विशेष जेनेटिक बदलाव देखा गया है। एक नई रिसर्च में सामने आया है कि इस बदलाव ने उनकी कैंसर से बचने की संभावना को बढ़ाया है।

Street Dogs | Sach Bedhadak

वॉशिंगटन। सबसे बड़े परमाणु हादसे के शिकाल चेर्नोबिल में कुत्तों ने कैंसर को मात दे दी। दरअसल, यहां रहने वाले आवारा भूरे भेड़ियों के झुंड में अब एक विशेष जेनेटिक बदलाव देखा गया है। एक नई रिसर्च में सामने आया है कि इस बदलाव ने उनकी कैंसर से बचने की संभावना को बढ़ाया है। साल 1986 में एक बड़ी परमाणु आपदा इस क्षेत्र में हुई थी, जिसके बाद लोगों ने इस पूरे क्षेत्र को खाली कर दिया था, तब यहां कुत्ते रह गए। कई वर्षों से वैज्ञानिकों की ओर से इनकी निगरानी की जा रही है। ऐसा माना जाता है कि परमाणु आपदा के 35 साल बाद रेडिएशन ने जानवरों को कैंसर से बचने की संभावना बढ़ा दी है।

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भेड़िये कैंसर के प्रति लचीले

पिछले महीने वॉशिंगटन में एक जीव विज्ञान बैठक में शोधकर्ता ने अपने निष्कर्षों को प्रस्तु किया। उन्होंने बताया कि ये भेड़िये पीढ़ियों शरीर में रेडियोधर्मी कणों के होने के बावजूद जीवित रहते हैं। दुनिया की सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना में कैंसर पैदा करने वाला रेडिएशन निकला, लेकिन उनके शोध से पता चलता है कि भेड़िए कैंसर के बढ़ते खतरों के प्रति काफी लचीले हैं। शोधकर्ताओं ने 2014 में चेर्नोबिल में परमाणु जोखिम के क्षेत्र से भेड़ियों के खून के सैंपल लाए थे।

विशेष जीपीएस कॉलर का इस्तेमाल

जानवर कहां कितने रेडिएशन के संपर्क में हैं, इसका पता लगाने के लिए शोधकर्ता टीम ने विशेष जीपीएस कॉलर का इस्तेमाल किया। इसके निष्कर्षों से पता चला कि भूरे भेड़ियों को औसतन श्रमिक की कानूनी सीमा से छह गुना ज्यादा रेडिएशन का सामना करना पड़ता है। फिलहाल क्षेत्र में चल रहे युद्ध के कारण शोधकर्ता वापस नहीं जा सके हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले जानवरों के डीएनए में दुनिया भर के वैज्ञानिकों की दिलचस्पी है। इससे वैज्ञानिकों को इंसानों को कैंसर से बचाने से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है।

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