अछूती काली आकाशगंगा, वैज्ञानिकों ने खोजी अनोखी गैलेक्सी

खगोलविदों ने गलती से एक अनोखी गैलेक्सी की खोज की है। यह गैस से भरी एक अछूती काली आकाशगंगा है, जिसमें कोई भी दृश्यमान तारा नहीं है। इस गैलेक्सी को J0613+52 नाम दिया गया है। खोज करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह आकाशगंगा अब तक पाई गई सबसे धुंधली आकाशगंगा हो सकती है। ग्रीन बैंक टेलीस्को (GBT) का इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिकों ने इस अंधेरी आकाशगंगा की खोज की है।

Galaxy No Visible Star | Sach Bedhadak

वॉशिंगटन। खगोलविदों ने गलती से एक अनोखी गैलेक्सी की खोज की है। यह गैस से भरी एक अछूती काली आकाशगंगा है, जिसमें कोई भी दृश्यमान तारा नहीं है। इस गैलेक्सी को J0613+52 नाम दिया गया है। खोज करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह आकाशगंगा अब तक पाई गई सबसे धुंधली आकाशगंगा हो सकती है। ग्रीन बैंक टेलीस्को (GBT) का इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिकों ने इस अंधेरी आकाशगंगा की खोज की है।

ग्रीन बैंक ऑब्जर्वेटरी के वरिष्ठ वैज्ञानिक करेन ओ’नील ने एक बयान में कहा कि जीबीटी को गलती से गलत कोऑर्डिनेट्स की ओर देखने को कहा गया। उन्होंने आगे कहा कि गलत दिशा में देखने के कारण यह गैलेक्सी मिली। इसमें कोई भी दृश्यमान तारा नहीं है।

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सितारे अगर वहां हैं, तो भी हम उन्हें देख ही नहीं सकते। इस गैलेक्सी की खास बात है कि यह अरबों प्रकाशवर्ष दूर नहीं है। इस कारण हम इसे बेहद साफ और कुछ-कुछ वैसा ही देख सकते हैं जैसा कि आज है। गैलेक्सी J0613+52 धरती से 27 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। J0613+52 की खोज खगोलविदों की ओर से तब की गई जब उन्होंने दुनिया भर के कई प्रमुख रेडियो दूरबीनों के इस्तेमाल से कम चमक वाली आकाशगंगाओं (LSB) में हाइड्रोजन गैस का सर्वेक्षण किया था।

तारों का हो रहा धीमे विकास

मालिन-1 अब तक की सबसे बड़ी सर्पिल आकाश गंगाओं में से एक है। यह हमारी मिल्की वे गैलक्सी से पांच गुना बड़ी है, लेकिन यह हमारी आकाशगंगा के मुकाबले सिर्फ 1 फीसदी चमकीला है। बड़ा आकार होने के बावजूद भी इसे नहीं देखा जा सकता। ऐसा लगता है कि LSB अन्य आकाश गंगाओं की लना में बेहद धीमे-धीमे विकसित हो रही है। इनमें से कई तारों के निर्माण प्रारंभिक चरण का अनुभव कर रहे हैं।

बेहद कम निकलता है प्रकाश

इस सर्वेक्षण में ग्रीन बैंक टेलीस्कोप भी था, जो दुनिया का सबसे बड़ा पूरी तरह से चलाने योग्य रेडियो टेलीस्कोप है। LSB में तारों की बेहद कम संख्या होती है। यह बेहद दूर भी होते हैं। इस कारण यह मिल्की वे या एंड्रोमेडा गैलेक्सी आकाश गंगाओं की तुलना में बेहद कम प्रकाश पैदा करती हैं। रात के आसमान में इन्हें देखना भी बेहद मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए सबसे पहली LSB मालिन-1 थी, जिसे 1980 के दशक में खोजा गया था।

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