सावरकर पर फिर ‘संग्राम’, ‘अंतिम जन पत्रिका’ में छपे सावरकर पर लेख पर सियासत, आखिर सावरकर का राजनीतिकरण क्यों?

गांधी मेमोरियल की पत्रिका ‘अंतिम’ जन में विनायक दामोदर सावरकर ( Vinayak Damodar Sawarkar ) पर एक लेख छपा है, जिस पर सियासत छिड़ गई…

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गांधी मेमोरियल की पत्रिका ‘अंतिम’ जन में विनायक दामोदर सावरकर ( Vinayak Damodar Sawarkar ) पर एक लेख छपा है, जिस पर सियासत छिड़ गई है। इस लेख पर कांग्रेस और महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) के पौत्र तुषार गांधी ने आपत्ति जताई है। दरअसल इस लेख में बताया गया है कि वीर सावरकर का देश की आजादी योगदान महात्मा गांधी से कमतर नहीं है। आजादी के अमृत महोत्सव के विशेष अंक में समिति की पत्रिका ‘अंतिम जन’ में समिति के संरक्षक और उपाध्यक्ष विजय गोयल ने यह लेख लिखा है।

वीर सावरकर से जुड़े 13 लेख हैं पत्रिका में

पत्रिका अंतिम जन में वीर सावरकर ( Vinayak Damodar Sawarkar ) से जुड़े 13 लेख हैं। इन लेख में एक चिंगारी थे सावरकर, गांधी और सावरकर का संबंध, वीर सावरकर और महात्मा गांधी, देशभक्त सावरकर शामिल हैं। इन लेख में बताया है कि देश की आजादी की लड़ाई के लिए जितना योगदान महात्मा गांधी ने दिया है उतना ही योगदान वीर सावरकर का है। इसके लिए लेख में काला पानी का सजा, वीर सावरकर ( Sawarkar ) ने जेल में रहते हुए जो यातनाएं सही, उन सबका जिक्र किया गया है। इसी लेख पर कांग्रेस और महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के योगदान की किसी से तुलना नहीं की जा सकती है।

तुषार गांधी ( Tushar Gandhi ) का कहना है कि ये बड़े ही अफसोस की बात है कि जिसका नाम गांधी जी की हत्या में आया, अब उन्हीं के नाम का महिमा मंडन किया जा रहा है। तुषार ने इस संबंध में कई सिलसिलेवार ट्वीट कर इस मामले में अपनी नाराजगी जताई।

तुषार गांधी ने अपने ट्वीट में कहा कि साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छह दिन बाद विनायक दामोदर सावरकर ( Vinayak Damodar Sawarkar ) को गाँधी जी की हत्या के षडयंत्र में शामिल होने के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन सबूतों के अभाव में फरवरी 1949 को उन्हें बरी कर दिया गया था।

सावरकर के नाम पर देश में दो धड़े क्यों ?

देश में सावरकर के नाम पर सभी दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते नजर आ रहे हैं। सावरकर के नाम पर देश में दो धड़े बने हुए हैं। एक वो जो उन्हें ‘वीर’ सावरकर मानते हैं, और दूसरे वो जिनकी नजर में वे कथित रूप से गांधी जी की हत्या में शामिल रहे। वहीं देखा जाए तो देश में NDA की सरकार आने के पहले कांग्रेस की सरकार के वक्त तक सावरकर को एक विलेन के रूप में दिखाया जाता रहा, वहीं अब NDA की सरकार के इन 8 सालों में सावरकर को वीर दिखाया जा रहा है। क्योंकि NDA की पहचान ही एक हिंदूवादी गठबंधन के रूप रही है। आखिर सावरकर ( Vinayak Damodar Sawarkar ) के नाम पर क्यों इतनी राजनीति होती है? क्या विनायक दामोदर सावरकर का वही चेहरा देश के सामने रखा जा रहा है जैसे वे असल में थे। इसके लिए हमें थोड़ी सी जानकारी सावरकर के बारे में लेनी होगी।

कौन थे सावरकर?

देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) ने अहिंसा के साथ लड़ाई लड़ी तो देश के कई युवाओं ने इस देश की आजादी के अपनी जान की बाजी लगा दी। शहीद भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव तो हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। सरदार उधम सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, मंगल पांडे औऱ न जाने लोगों ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए अपना बलिदान तक दे दिया।

दामोदर सावरकर को हिंदूवादी नेता का जनक माना जा सकता है। वे हिंदू महासभा के संस्थापक थे। बेहद कम उम्र में ही उन्होंने मित्र मेला नाम का एक संगठन बनाया था। जिसमें लोगों को भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाता था। यहां तक कि लंदन में सावरकर ने अपने साथी भारतीय छात्रों को देश की लड़ाई में शामिल होने के लिए फ्री इंडिया सोसाइटी का गठन किया। अंग्रेज सरकार को सावरकर से कितनी असुरक्षा थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सावरकर के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के चलते उनकी ग्रेजुएशन की डिग्री वापस ले ली गई थी। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हथियारों के इस्तेमाल का समर्थन किया। 13 मार्च 1910 को उन्हें लंदन से गिरफ्तार किया गया। औऱ मकदमे के लिए भारत भेज दिया गया। 24 दिसंबर 1910 को उन्हें अंडमान में जेल की सजा सुनाई गई। जेल में भी सावरकर अनपढ़ कैदियों को शिक्षा देते थे।

सावरकर और गांधी जी की हत्या में संबंध

दरअसल 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। इस हत्या की जिम्मेदारी नाथूराम गोडसे ( Nathuram Godse ) ने ली थी। क्यों कि नाथूराम गोडसे भी हिंदू महासभा का सदस्य था, इसलिए गांधी जी की हत्या की साजिश का आरोप हिंदू महासभा पर लगा। सावरकर हिंदू महासभा के नेता थे, इसलिए उन्हें इस मामले में आरोपित बनाया गया। लेकिन सबूतों के अभाव में वे बरी हो गए थे। यही कारण है कि देश का एक वर्ग आज भी सावरकर को गांधी जी की हत्या का आरोपी बताता है। जबकि दूसरा वर्ग देश की आजादी के लिए उनके क्रांतिकारी स्वरूप को देखता है और उसकी प्रशंसा करता है।

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