पिता शराबी…पढ़ाई छोड़ मवेशी तक चराए, जानें-23 की उम्र में सरपंच बनीं प्रवीणा के संघर्ष की कहानी

राजस्थान के पाली जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा मात्र 23 साल की उम्र में 7 गांवों की सरपंच बन गई है। लेकिन, प्रवीणा का जीवन काफी संघर्ष भरा रहा है।

Praveena | Sach Bedhadak

Praveena : पाली। राजस्थान के पाली जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा मात्र 23 साल की उम्र में 7 गांवों की सरपंच बन गई है। लेकिन, प्रवीणा का जीवन काफी संघर्ष भरा रहा है। उसके पिता शराबी थे और उसका भी साया बचपन में ही प्रवीणा के सिर से उठ गया था। ऐसे में गरीबी के चलते उसने बीच में ही पढ़ाई तक छोड़ दी और पेट पालने के लिए दूसरे के मवेशियों को चराना पड़ा। लेकिन पितृसत्तात्मक समाज की सभी दुश्वारियों से संघर्ष करते हुए सरपंच बनने वाली प्रवीणा अब दूसरों के लिए प्ररेणा बनी हुई है।

प्रवीणा ने सरपंच बनने के लिए अनगिनत लड़ाइयां लड़ीं, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी और लगातार अपने हौसले को और मजबूत करती चली गईं। प्रवीणा ने साल 2014 से 2019 तक पाली जिले के रूपावास, केरला, मुलियावास, रौनगर, सेवरा की ढाणी, मूला जी की ढाणी और नारू जी की ढाणी की सरपंच के रूप में काम किया। सरपंच के रूप में उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन बालिका शिक्षा के लिए उनका संघर्ष जारी है। वो आज यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि लड़कियों को शिक्षा के लिए उस तरह का संघर्ष ना करना पड़े जो उन्होंने किया।

तीसरी कक्षा में पढ़ाई छोड़ी…दूसरों के मवेशी चराए

प्रवीणा का कहना है कि उनके पिता शराबी थे। ऐसे में घर चलाने के लिए दूसरों के मवेशियों को चराया। इतना ही नहीं, गरीबी के चलते तीसरी कक्षा के बाद पढ़ाई तक छोड़ दी थी। लेकिन, 2 साल बाद पाली गांव में वंचित समूहों की लड़कियों के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय उम्मीद की किरण बनकर आया। एजुकेट गर्ल्स नामक एक गैर सरकारी संगठन के एक क्षेत्रीय कार्यकर्ता ने उनके परिवार को उन्हें स्कूल भेजने के लिए मना लिया, जहां उन्हें फ्री शिक्षा मिली। हालांकि, स्कूली शिक्षा के दौरान ही सिर से पिता का भी साया उठा गया।

18 की उम्र में शादी…23 उम्र में बनीं सरपंच

उन्होंने बताया कि स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 18 साल की उम्र में एक मजदूर से उसकी शादी हुई और 23 साल की उम्र में सरपंच बनी। वह अपने ससुराल में सबसे अधिक शिक्षित महिला थीं, जिससे उन्हें सरपंच का चुनाव लड़ने का साहस मिला। मैंने चुनाव लड़ा और एक बार जब मैं सरपंच बन गई। उन्होंने कहा कि अगर मुझे शिक्षा नहीं मिली होती तो मैं एक बालिका वधू होती जिसे अपना बाकी जीवन मवेशियों को चराने और घर के काम काज में बिताना पड़ता।

लड़कियों की शिक्षित करने के लिए प्रयासरत

सरपंच बनने के बाद प्रवीणा की पहली कोशिश यही थी कि शिक्षा के लिए अधिकतम वजट आवंटित हो। प्रवीणा ने सरपंच रहते हुए लड़कियों के लिए एक स्कूल का निर्माण कराया था। प्रवीणा ने कहा कि अब मुझे कोई ऐसी लड़की मिलती है जो स्कूल नहीं जाती है, तो मैं यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती हूं कि उसे भी वही उम्मीद मिले जैसी मुझे मिली।

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