Rajasthan Election 2023 : ERCP के सहारे सत्ता की राह…गुर्जर-मीणा बेल्ट को साधने की कवायत तेज

राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। सत्ता की दावेदार दोनों पार्टियां अपना अपना एजेंडा तय करने और प्रत्याशियों की घोषणा में जुटी हैं।

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(गजानन्द शर्मा) : जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। सत्ता की दावेदार दोनों पार्टियां अपना अपना एजेंडा तय करने और प्रत्याशियों की घोषणा में जुटी हैं। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने हाल ही अपनी सभा में ईआरसीपी, जातिगत जनगणना, ओपीएस आदि मुद्दे उठाकर एजेंडा तय करने का प्रयास किया। कांग्रेस ईआरसीपी यानी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को पहले ही अपना चुनावी मुद्दा बना चुकी है और इसको लेकर वह अपनी मुख्य प्रतिद्धवंधी पार्टी भाजपा पर काफी हमलावर भी है। अब वह इसके आधार पर वोटों की फसल भी काटना चाहती है। 

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्स इस रे के माध्यम से नाराज गुर्जर मतदाताओं को साधने का प्रयास कर सकती है। ईआरसीपी गुर्जर-मीणा बेल्ट से होकर गुजरेगी। पार्टी ने ईआरसीपी को लेकर 16 अक्टूबर से बारां से जनजागरण अभियान शुरू किया, जिसमें पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आए थे। अब इसी यात्रा अभियान को प्रियंका गांधी ने दौसा की अपनी आम सभा में चुनावी आयाम दिया। उन्होंने अपने संबोधन में ईआरसीपी के मसले को जोरदार तरीके से उठाया और यह कहकर केंद्र पर निशाना साधा कि उसने ईआरसीपी का काम पूरा नहीं किया, इसे अब हम पूरा करेंगे। 

 ईआरसीपी राजस्थान के लिए बहुत अहम

इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईआरसीपी राजस्थान के लिए बहुत अहम है। प्राणवायु की तरह है। राजस्थान के एक हिस्सेको इंदिरा गांधी नहर परियोजना से निकली नहरों ने अन्न का कटोरा बना दिया है तो हाड़ौती अंचल को चंबल की नहरों ने अन्नपूर्णा बनाया है। अब यदि ईआरसीपी बनकर तैयार हो जाती है तो यह प्रदेश के लिए वरदान से कम साबित नहीं होगी। प्रदेश के जिलों का भूगोल बदलने से पहले ईआरसीपी प्रदेश के 13 जिलों से होकर गुजरने वाली थी। अब जिलों के पुनर्गठन के बाद इन जिलों की संख्या अधिक हो सकती है, पर मूल रूप से सवाईमाधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, दौसा, झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, करौली, अलवर, भरतपुर, धौलपुर जिले इसमें शामिल हैं।

एंटी इन्कंबेंसी से लड़ने का हथियार है ईआरसीपी!

ईआरसीपी से प्रभावित 13 जिलों का सियासी गणित व सामाजिक समीकरण देखें तो मामला सियासी रूप से बहुत दिलचस्प नजर आता है। इनमें से कई जिलों में गुर्जर-मीणा मतदाता सियासी रूप से प्रभावशाली हैं और इसमें कांग्रेस की चुनावी जीत के कई सूत्र छिपे हैं। कांग्रेस को इस बार गुर्जर मतदाताओं को खासतौर पर साधना है। राजनीतिक तौर पर माना जाता है कि सचिन पायलट प्रकरण के बाद से गुर्जर मतदाता कांग्रेस से खफा हैं, तो क्या कांग्रेस ईआरसीपी के माध्यम से गुर्जर मतदाताओं को साध सकती है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह परियोजना सत्ता विरोधी रूझान दूर करने में कुछ हद तक मददगार हो सकती है। ईआरसीपी से संबधित जिलों में प्रदेश की करीब 40-41 प्रतिशत आबादी रहती है और वहां 83 विधानसभा सीटें हैं। 

कांग्रेस चाहती है फिर से शानदार प्रदर्शन

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां शानदार सफलता अर्जित की थी और इस बार वह अपने इस प्रदर्शन को दोहराना भी चाहेगी। यह आम धारणा है कि कांग्रेस को गुर्जर मत एक मुश्त मिले और उसकी शानदार जीत के संवाहक बने। लेकिन बाद में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चले राजनीतिक विवाद के कारण गुर्जर मतदाता कांग्रेस से खफा हो गए और इस बार शायद पार्टी को पिछली बार जैसा समर्थन न मिल पाए। अब लगता है कांग्रेस पर ईआरसीपी के माध्यम से गुर्जर मतदाताओं को जोड़ने का प्रयास कर रही है क्योंकि परियोजना से लाभान्वित होने वालों में किसानों में गुर्जर किसान भी होंगे और यह उनके लिए वरदान साबित हो सकती है। 

भाजपा गुर्जरों के लिए लाई बिधूड़ी का चेहरा 

दूसरी ओर भाजपा भी गुर्जर मतों की धारा को अपनी ओर मोड़ने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। उसने गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को विधानसभा चुनाव में टिकट देकर अपने सियासी समीकरणों को धार दी। इसके साथ ही बसपा सांसद दानिश अली पर टिप्पणी को लेकर विवाद के घेरे में आए भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी को पार्टी ने टोंक का चुनाव प्रभारी बनाकर भी गुर्जर समाज को सियासी संदेश दिया है कि वह उनके साथ है। टोंक गुर्जर प्रभाव क्षेत्र है और पार्टी ने बिधूड़ी को वहां भेजकर न के वल गुर्जर मतों को साधने का प्रयास किया है, बल्कि उनको अपने पाले में लाने का प्रयास भी किया है। भाजपा ने प्रदेश के गुर्जर समाज को यह संदेश दिया है कि पार्टी ने राजनीतिक संकट से घिरे बिधूड़ी को अके ला नहीं छोड़ा है। 

40 सीटों पर प्रभाव रखते हैं गुर्जर

कांग्रेस के पास प्रदेश का सबसे बड़ा गुर्जर सियासी चेहरा है लेकिन वोटों का बंटवारा रोकना बहुत ही चुनौती पूर्ण है। गुर्जर मतदाता जयपुर की दूदू, कोटपूतली, जमवारामगढ, विराटनगर, दौसा जिले में दौसा, बांदीकुई, लालसोट, सिकराय, महवा, टोंक जिले की टोंक, निवाई,देवली, उनियारा, मालपुरा, सवाई माधोपुर से जुडी सवाई माधोपुर,गंगापुर, खंडार अजमेर से जुडी पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, बूंदी से जुड़ी केशवरायपाटन, हिंडौली, खानपुरा, कोटा जिले की पीपल्दा भरतपुर से जुड़ी नगर, कामा, बयाना धोलपुर जिले की बाड़ी, बसेड़ी करौली की टोडाभीम, सपोटरा, बारां झालावाड़ की मनोहरथाना, अलवर जिले की बानसूर व थानागाजी सीट पर प्रभावी भूमिका में है। इनके अलावा भीलवाड़ा, झूंझनूं व सीकर जिले की कई सीटों पर भी गुर्जर मतदाता प्रभावी हैं। कुल मिलाकर 40 सीटों पर वे प्रभाव रखते हैं। अब यदि कांग्रेस ईआरसीपी के माध्यम से गुर्जर मतदाताओं के साथ अपने तार सार्थक रूप से जोड़ पाती है तो उसका असर अन्य सीटों पर हो सकता है।

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