नए प्रयोग से बनेगा जीत का संयोग! चुनाव से पहले राजस्थान में इस फॉर्मूले पर दांव लगा सकती है कांग्रेस

सीएम अशोक गहलोत ने 17 जून को जयपुर में युवा कांग्रेस के एक कार्यक्रम में 2 महीने पहले उम्मीदवारों को टिकट देने की बात कही जिसके बाद अटकलों का बाजार गरम हो गया.

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कनिका कटियार: ‘दिल्ली में लंबी बैठकों का सिस्टम बंद होना चाहिए और चुनावों से 2 महीने पहले टिकट फाइनल कर दें, जिसे टिकट मिलना है, उसे इशारा कर दें, जिससे वो लोग काम में लग जाएं. हमने प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को भी कहा है, दो महीने पहले टिकट तय हो जाएं जिन्हें टिकट मिलना है, वह नाम तय हो जाएं’ 17 जून को राजधानी जयपुर में सीएम अशोक गहलोत ने युवा कांग्रेस के एक कार्यक्रम में यह बयान दिया जिसके बाद सियासी गलियारों में कांग्रेस की नई रणनीति को लेकर चर्चाओं का बाजार गरम हो गया.

बताया जा रहा है कि कांग्रेस चुनावों में इस बार नई रणनीति पर दांव खेल सकती है. मालूम हो कि पिछले कई सालों से राजस्थान की राजनीति में एक ही तरह की परंपरा चलती आई है लेकिन इस बार राजस्थान में चुनाव से 2 महीने पहले परंपरा बदले जाने की संभावना प्रबल दिख रही है जिनको गहलोत के बयान के बाद बल मिला है.

गहलोत के बयान के बाद अब राजस्थान से लेकर दिल्ली तक यही चर्चा है कि कांग्रेस इस बार चुनाव से 2 महीने पहले अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार देगी. दरअसल आने वाले चुनाव को लेकर सीएम अशोक गहलोत लगातार फील्ड में सक्रिय है और लगातार बड़ी घोषणाएं और राहत देकर सरकार रिपीट का दावा कर रहे हैं.

नए प्रयोग की राह चली कांग्रेस

माना जा रहा है कि कांग्रेस के मिशन रिपीट को लेकर राजस्थान में हाईकमान और सीएम गहलोत हर संभव फॉर्मूले पर काम कर सकती है. मालूम हो कि गहलोत लगातार अपने हर दौरे पर मिशन रिपीट की बात करते हैं और जनता को माई बाप बताते हुए कहते हैं कि इस बार जनता का मूड देखकर लग रहा है कि रिवाज बदल जाएगा.

वहीं इधर कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सीएम के दौरे और हाल में चल रहे महंगाई राहत कैंप के बाद सूबे का माहौल बदला है और सरकार के पक्ष में माहौल और नैरेटिव सेट होता हुआ दिख रहा है.

इसके इतर राजस्थान मॉडल को लेकर कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव हिमाचल और कर्नाटक में गहलोत सरकार की योजनाओं को प्रचारित किया जिसका फायदा नतीजों में देखने को मिला. वहीं कांग्रेस अब बीजेपी के गुजरात मॉडल वाले नैरेटिव सेट करने के रास्ते चल रही है जहां किसी एक राज्य को मॉडल स्टेट बनाकर अन्य राज्यों की चुनावी हवा बदली जाए.

दो महीने पहले टिकट की घोषणा क्यों?

वहीं जानकारो का कहना है कि अगर चुनाव से 2 महीने पहले टिकटों की घोषणा कर दी जाए तो उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार करने का भरपूर टाइम निकाल सकता है और दूसरी ओर टिकट वितरण के दौरान इतने समय में बगावती नेताओं को भी मैनेज़ किया जा सकता है. बता दें कि चुनावों से पहले कांग्रेस का इतिहास रहा है की टिकट घोषणा के वक्त बग़ावत कर रहे लोगो को कांग्रेस साधने में नाकाम रहती है जिसका नुकसान बाद में उठाना पड़ता है.

कर्नाटक में दिखा था रणनीति का कमाल

गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक चुनावों के दौरान अपनी रणनीति में बदलाव किया था जिसके बाद कांग्रेस ने नए फॉर्मूले पर जाते हुए चुनाव से 2 महीने पहले ही उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया था जिसका फ़ायदा उन्हें चुनावों के बाद मिला. कर्नाटक में कांग्रेस की बदली हुई रणनीति के बाद बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा.

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