पिंक सिटी में पावणे: रक्षा सौदा..चीन को लाल आंख और 25 साल का लक्ष्य, क्यों अहम है भारत-फ्रांस की ये द्विपक्षीय वार्ता

पीएम मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों होटल ताज रामबाग पैलेस में भारत और फ्रांस के बीच कई पहलुओं पर द्विपक्षीय संबंधों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों पर वार्ता करेंगे.

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PM Modi & Emmanuel Macron Jaipur Visit: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों आज (25 जनवरी) को 2 दिन के राजकीय दौरे पर भारत आ रहे हैं जहां वह गणतंत्र दिवस की परेड में चीफ गेस्ट के तौर पर शामिल होंगे. वहीं इससे पहले राष्ट्रपति मैक्रों गुरुवार को जयपुर आएंगे जहां वह पीएम मोदी के साथ जयपुर शहर का दीदार करेंगे. जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति मैक्रों और पीएम मोदी जयपुर के कई ऐतिहासिक स्थलों का दौरा करेंगे जहां वह हवामहल, आमेर फोर्ट और जंतर-मंतर जाएंगे. इसके अलावा परकोटे में मोदी-मैक्रों का एक रोड शो भी प्रस्तावित है.

वहीं राजधानी जयपुर में अपने 6 घंटे की विजिट के आखिरी पड़ाव में फ्रांस राष्ट्रपति मैक्रों होटल ताज रामबाग पैलेस में पीएम मोदी के साथ भारत और फ्रांस के बीच कई पहलुओं पर द्विपक्षीय संबंधों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों पर वार्ता करेंगे. जानकारी के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक में अगले 25 सालों के संबंधों को साधते हुए रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में चर्चा की जाएगी.

इसके अलावा दोनों नेता रक्षा-सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग, व्यापार, पयार्वरण, ऊर्जा में सहयोग बढ़ाने को लेकर भी चर्चा करेंगे. वहीं भारत की फ्रांस से 26 राफेल-एम (मरीन वर्जन) युद्धक विमान और 2 स्कॉर्पियन पनडुब्बियों की खरीद के साथ ही कई रक्षा सौदों पर आखिरी बिंदुओं पर चर्चा होगी.

‘रूस पर कम हो हथियारों की निर्भरता’

बता दें कि रूस-यूक्रेन जंग के बाद वैश्विक पटल पर तस्वीर बदली है जहां भारत रक्षा के क्षेत्र में और खासतौर पर हथियारों की खरीद के मामले में अपनी निर्भरता रूस पर कम करना चाहता है हालांकि भारत की ओऱ से आधिकारिक तौर पर ऐसा बयान कभी नहीं दिया गया है लेकिन भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग को और गहरा करना दोनों नेताओं के बीच बातचीत का मुख्य एजेंडा है.

मालूम हो कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार खरीदारी का बाजार है और फ्रांस दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा हथियार बेचने वाला देश है. वहीं 2018 से 2022 तक भारत ने 30% हथियार ही फ्रांस से ही खरीदे हैं जहां भारत और फ्रांस के बीच सालाना करीब 97 हजार करोड़ रुपए का व्यापार चलता है.

दरअसल पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर भारत ने MQ-9 ड्रोन की डील की थी, वहीं जर्मनी के साथ 6 पनडुब्बियां बनाने का समझौता होना बताया जा रहा है. इसके अलावा फ्रांस से भारत ने 36 राफेल फाइटर जेट्स लिए हैं. वहीं मोदी की फ्रांस विजिट (2023) से पहले भारतीय नेवी ने 26 और राफेल खरीदने की इच्छा जाहिर की थी.

टेक्नोलॉजी शेयरिंग है अहम पड़ाव

फ्रांसीसी और यूरोपीय बाजारों तक भारत की पहुंच बनने से युवाओं के लिए नौकरियां भी पैदा होंगी जो अगले 25 सालों के रोडमैप का ही हिस्सा है. इस रोडमैप में विमान के इंजन, पनडुब्बियों, समुद्री तकनीक, भूमि युद्ध प्रणालियों और उपकरणों, रोबोटिक्स, साइबर और अंतरिक्ष में सैन्य चुनौतियों का समाधान करने में भारत की स्वदेशी क्षमताओं को मजबूत करना भी शामिल है.

मालूम हो कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 11 अक्टूबर को 5वीं वार्षिक रक्षा वार्ता (एडीडी) के लिए फ्रांस का दौरा किया था जहां भी सैन्य और औद्योगिक विस्तार पर ही चर्चा की गई थी. सूत्रों का कहना है कि उस बैठक के दौरान, फ्रांस ने भारत और अन्य साझेदारों के लिए पूरी तरह से टेक्नोलॉजी शेयरिंग के साथ “मेक इन इंडिया” रक्षा संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी.

फ्रांस भारत का रणनीतिक सहयोगी क्यों?

फ्रांस भारत के लिए एक प्रमुख सहयोगी के रूप में उभरा है जो महत्वपूर्ण रक्षा तकनीक को साझा करने की इच्छा के लिए यूरोपीय देशों के बीच खड़ा है. सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के बीच द्विपक्षीय बैठक के दौरान यह साझेदारी रक्षा सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित थी.

जानकारों का कहना है कि दोनों देशों के साझा लक्ष्य नई तकनीक और प्लेटफार्मों के डिजाइन भारत को सैन्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मददगार साबित होगी. इसके अलावा यह सहयोग विशेष रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भी कारगात होगा.

इंडो-पैसिफिक में भारत की मजबूत मौजूदगी!

वहीं अगर समुद्र की बात करें तो फिलहाल भारत को चीन से खतरा है ऐसे में भारत राफेल जेट्स का इस्तेमाल इंडो-पैसिफिक में चीन के सामने अपनी स्थिति मजबूत दिखाने के लिए करना चाहता है. हालांकि जानकारों का कहना है कि फ्रांस भारत के जरिए इंडो-पैसिफिक में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहता है.

मालूम हो कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने साल 2021 में मिलकर इंडो-पैसिफिक को लेकर एक संगठन की नींव रखी थी जिसमें शुरुआत में फ्रांस का नाम चला लेकिन बाद में फ्रांस को शामिल नहीं किया गया जिस पर फ्रांस ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी.