शांति धारीवाल को लेकर बोले CM गहलोत- ये मेरे खिलाफ फिर भी मंत्री बनाया

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज जयपुर में पंडित नवल किशोर शर्मा की प्रतिमा का अनावरण किया और जयपुर हेरिटेज के विकास कार्यों का लोकार्पण…

शांति धारीवाल और अशोक गहलोत

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज जयपुर में पंडित नवल किशोर शर्मा की प्रतिमा का अनावरण किया और जयपुर हेरिटेज के विकास कार्यों का लोकार्पण भी किया। इस कार्यक्रम में विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी, संसदीय कार्य मंत्री और यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल समेत कई नेता और पदाधिकारी शामिल रहे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धारीवाल को लेकर कुछ ऐसा कह दिया जिस जिसके चर्चा चारों तरफ हो रही है।

चुन-चुन कर मंत्री बनाया, चाहे किसी का भी आदमी हो

दरअसल अशोक गहलोत ने अपने संबोधन में कहा कि यह लोकतंत्र है, हमें सभी को साथ लेकर चलना होता है। ये शांति धारीवाल यहां मंच पर बैठे हुए हैं ये मेरे खिलाफ थे लेकिन फिर भी मैंने अपने मंत्रिमंडल में मंत्री बनाने का ऑफर सबसे पहले इन्हीं दिया। हमने हर उस व्यक्ति को मौका दिया है जो कांग्रेस का है। मैंने 1998 में चुन-चुन कर उन सब को मौका दिया चाहे वो किसी के भी आदमी हों, चाहे कांग्रेस के हों, सोनिया गांधी के हों, हाईकमान का हो, किसी का भी हो। मैंने उस कहावत पर काम किया है कि लाइन को बड़ा खींचो ना की किसी की काटो।

किए-कराए पर पानी फिराया

सीएम ने कहा कि राजनीति में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सभी को साथ लेकर चलना होता है। शांति धारीवाल अब सोच रहे होंगे कि अशोक गहलोत ने तो सारे किए-कराए पर पानी फेर दिया लेकिन मैं कह देता हूं कि मैंने तो मान-सम्मान किया है पानी नहीं फिराया है। जो कुछ भी मैंने कहा, मैंने किया उसका मर्म क्या है। सोनिया गांधी ने इसे पहचाना मुझे पहली बार सीएम बनने का मौका भी उनके कार्यकाल में ही मिला। कांग्रेस की गुड पॉलिटिक्स है। 

बाबू जी से लेता था राजनीतिक सलाह

सीएम ने नवल किशोर शर्मा के साथ बीते वक्त को भी याद करते हुए साझा किया और कहा कि बाबू जी और मैं तब से काम कर रहे हैं जब हम NSUI में थे। मेंबर ऑफ पार्लियामेंट का चुनाव होना था, मैं जीता और मेंबर बना और हम दोनों वापस संसद में मिले, वे प्रदेश अध्यक्ष भी बने। अधिकतर लोगों को मालूम ही नहीं होगा। तब मुझे प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री बनाया। मेरी शुरुआत इस तरह से हुई।उनके साथ संबंध आखिरी वक्त तक रहे। मेरे विचार मिलते थे लेकिन अप्रोच अलग थी, विचार नहीं मिलते तो मैं उनके पास बार-बार क्यों जाता। 

उनके देहांत के बाद भी मैं उनके परिवार के साथ टच में रहा। राजनीतिक कौशल के रूप में कोई भी जिम्मेदारी हो, वे हमेशा तैयार रहते थे उसे स्वीकार करते थे, वे जहां रहे वहां अमिट छाप छोड़ गए। लोग प्रेरणा लेंगे इनकी प्रतिमा से,  जिन्होंने प्रतिमा बनाई है उन्हें भी मैं बधाई देता हूं।

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