Rajasthan Politics : धनखड़ की जीत से क्या जाट वोटबैंक तो साधने में सफल होगी बीजेपी?

Rajasthan Politics : जगदीप धनखड़ अब उपराष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं। इस जीत से भाजपा को जो ताकत मिली है। वह अब उसका इस्तेमाल राजस्थान…

jaat 2 | Sach Bedhadak

Rajasthan Politics : जगदीप धनखड़ अब उपराष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं। इस जीत से भाजपा को जो ताकत मिली है। वह अब उसका इस्तेमाल राजस्थान के विधानसभा में चुनावों में करेगी। अगले साल 2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं। इस चुनाव में भाजपा किसी भी तरह सत्ता में वापस आना चाह रही है। धनखड़ के जाट होने के चलते अब भाजपा जाटलैंड के वोटों को अने पाले में लाने की कोशिश करेगी।

धनखड़ के सहारे पार होगी भाजपा की नैया?

अगर देखा जाए तो यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सपा और RLD के गठबंधन खेमे में माने जा रहे जाट वोटों में बड़ी सेंधमारी की थी। RLD के गढ़ माने जाने वाले पूर्वांचल में जाट वोटर्स इस बार भाजपा के साथ आए। जो कि जाट राजनीति के संदर्भ में एक बहुत बड़ी बात है। जाटों ने यूपी में भाजपा की जीत को काफी अंतर से बढ़ा दिय़ा था। अब भाजपा का फोकस राजस्थान के जाटलैंड पर है। धनखड़ के सहारे भाजपा अपनी नैया पार लगाने की जुगत में है। देखा जाए तो राजस्थान में नागौर, सीकर, झुंझुनूं, चूरू, जोधपुर, भरतपुर, जयपुर, बाड़मेर, जैसलमेर में जाटों की अच्छी खासी तादाद है और पूरे प्रदेश में लगभग 9 प्रतिशत जाट समाज के लोग हैं।

झुंझुनूं, सीकर, चूरु में 21 विस सीटें, भाजपा के पास सिर्फ 3

वहीं झुंझुनूं से धनखड़ का संबंध हैं। इसका मतलब भाजपा झुंझुनूं में धनखड़ के सहारे तो अपना वोट बैंक बनाने की जुगत में रहेगी। क्योंकि झुंझुनूं में भाजपा की स्थिति कुछ ठीक नहीं है। सीकर में भी पार्टी का एक भी विधायक नहीं है। वहीं चूरू में भी भाजपा के पास विधायकों का सूखा पड़ा है। सबसे बड़ी बात है कि इन तीनों जिलों में विधानसभा की कुल 21 सीटें हैं। इनमें से 17 सीटें कांग्रेस के पास है। बाकी 3 सीटों पर भाजपा के विधायक हैं। वहीं एक सीट पर निर्दलीय विधायक है। वहीं पूरे प्रदेश की बात करें तो लगभग 40 सीटों पर जाट समाज के लोग ही पार्टी की हार-जीत तय करते हैं।

किसान आंदोलन से होने लगा था मोहभंग

जगदीप धनखड़ ने राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसके अलावा उन्हें प्रदेश में किसान पुत्र की तरह भी प्रचारित किया जाता रहा है। पिछले साल कृषि कानूनों को लेकर राजस्थान में भी बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। आंदोलन के दौरान शेखावटी अंचल में भाजपा नेताओं पर किसानों के साथ दुर्व्यवहार के भी आरोप लगे थे। जिसके बाद भाजपा से जाट किसानों का कुछ मोह भंग होने लगा था।

लेकिन अब धनखड़ के राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति बनने से यहां के जाटों-किसानों को भाजपा साधने की कोशिश करेगी। क्योंकि देखा जाए तो भाजपा प्रदेश अध्य़क्ष सतीश पूनिया जाट समुदाय से ही आते हैं, लेकिन उसके बावजूद जाट वोट बेंक पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत नहीं मानी जाती। इसके नतीजे ये निकल कर आते हैं कि शेखावटी अंचल, भरतपुर संभाग में भाजपा को ज्यादा समर्थन नहीं मिलता है।

प्रदेश के जाट होंगे किसके साथ?

राजस्थान विधानसभा चुनाव में जाट कितने महत्वपूर्ण होते हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में 5 अगस्त को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री और JJP यानी जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला राजस्थान दौरे पर आए थे। उन्होंने यहां बड़ी संख्या में युवाओं का सम्मेलन किया था। उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला प्रदेश में आए दिन दौरे कर रहे हैं। वे JJP को राजस्थान में खड़ा करने की जुगत में है। वहीं RLP के संयोजक हनुमान बेनीवाल जाटों की राजनीति के लिए राजस्थान में तीसरे विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश की 40 सीटों पर हार-जीत तय करने वाले जाट इस विधान चुनाव में किसके साथ जाएंगे औऱ क्या भाजपा को धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनाने का फायदा मिलेगा?

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