टी स्टॉल पर कप धोए पुरखाराम ने, अब MBBS कर बनेंगे डॉक्टर

पुरखाराम बताते हैं 10वीं पास करने के बाद सांइस से आगे पढ़ना चाहता था लेकिन घर की आर्थिक परिस्थितियां इस बात की इजाजत नहीं दे रही थीं। बस फिर एक चाय की दुकान पर काम करने लगा।

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बाड़मेर के रेतीले धोरों पर बारिश की सौंधी खुशबू सरीखी है पुरखाराम के एमबीबीएस में चयन की खबर। चाय के स्टॉल पर कप धोते-धोते पुरखाराम ने डॉक्टर बनने का जो सपना संजोया था वो सच हो गया। पुरखाराम की सफलता इस बात की साक्षी है कि जिन सपनों को साकार करने के पीछे मेहनत छुपी होती है वे अकसर सच होते ही हैं। 5655 ऑल इंडिया रैंक पाने वाले पुरखाराम अब एमबीबीएस कर रहे हैं। पुरखाराम ने फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान में प्रवेश लेकर तैयारी की और पिछले दिनों आए नीट के रिजल्ट में उनका चयन हो गया।

तीसरे प्रयास में मिली सफलता

पुरखाराम बताते हैं 10वीं पास करने के बाद सांइस से आगे पढ़ना चाहता था लेकिन घर की आर्थिक परिस्थितियां इस बात की इजाजत नहीं दे रही थीं। बस फिर एक चाय की दुकान पर काम करने लगा। एक दिन होटल पर काम करने जा रहा था तब मेरे स्कूल के साइंस टीचर भैरूसिंह मिल गए उन्होंने ही मुझे बाड़मेर की फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान के बारे में बताया। बस फिर क्या था, मैं उसी दिन से फिफ्टी विलेजर्स की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में जुट गया। इसमें पास होने पर मुझे फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान में प्रवेश मिल गया। तब से यहां रहकर नियमित रूप से अध्ययन किया और 11वीं में अच्छे नंबरों से पास हुआ और अगले साल NEET की तैयारी की और उसमें 540 अंक हासिल किए लेकिन मेरा चयन नहीं हुआ। फिर NEET की तैयारी की एवं 588 अंक प्राप्त किए।

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परिजनों और साथियों ने बढ़ाया हौसला

पुरखाराम बताते हैं, दो बार नीट की परीक्षा दी लेकिन असफलता मिली, थोड़ी निराशा भी हुई लेकिन परिजनों और साथियों ने हौसला बढ़ाया। तीसरी बार में नीट एग्जाम में 645 अंक मिले और MBBS मे चयन हो गया। इस बार मेरी AIR 5655 रही। वो कहते हैं, तीसरी बार में अगर मैं चयनित नहीं हुआ होता तो शायद चाय की थड़ी कप धोना मेरी किस्मत बन जाती लेकिन ईश्वर पर मुझे पूरा भरोसा था कि मेरी मेहनत जरूर सफल होगी।

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परिवार के बूते नहीं था मुझे पढ़ाना

पुरखाराम कहते हैं, मैं बेहद गरीब परिवार से हूं। मेरे पिता मल्लाराम किसान हैं और मां हाउस वाइफ। घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं है। छोटी सी आय में मेरे पिता हम चार भाईयों और दो बहनों वाला बड़े परिवार को मुश्किल से ही चला पाते हैं। यही वजह है कि मुझे आगे पढ़ाना वह भी साइंस स्ट्रीम में, उनके लिए संभव नहीं था। घर में आर्थिक सहयोग देना था इसलिए मैंने चाय के छोटे से स्टॉल पर काम करना शुरू कर दिया। लेकिन मन में कहीं ना कहीं डॉक्टर बनने का सपना देखा था, जो ईश्वर ने पूरा किया है। मैं गरीबी में रहा हूं और गरीब लोगों की समस्याओं को अच्छे से समझता हूं। उनके लिए काम करना मेरा सौभाग्य होगा।

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