हजारों किलोमीटर का सफर तय कर भरतपुर पहुंचे कुरंजा नामक परिंदे

भरतपुर। हजारों किलोमीटर दूर का सफर तय करने के बाद प्रवासी पक्षी कुरंजा यानि डेमोसाइल क्रेन विश्वविख्यात केवलादेव नेशनल पार्क और आसपास के इलाके में…

हजारों किलोमीटर का सफर तय कर भरतपुर पहुंचे कुरंजा नामक परिंदे

भरतपुर। हजारों किलोमीटर दूर का सफर तय करने के बाद प्रवासी पक्षी कुरंजा यानि डेमोसाइल क्रेन विश्वविख्यात केवलादेव नेशनल पार्क और आसपास के इलाके में दिखाई दिए हैं। अपने वतन से उड़ान भरकर बड़ी संख्या में कुरंजा परिंदों ने भरतपुर में केवलादेव नेशनल पार्क के पास पड़ाव डाल दिया है और कुछ दिनों बाद जयपुर, अजमेर के रास्ते होते हुए यह परिंदे जोधपुर के खींचड़ पहुंचेंगे।

बताया जा रहा है कि ये परिंदे अपने तय समय पर यहां पहुंचे हैं और पानी के स्रोत, भरपूर भोजन इन परिंदों को यहां तक खींच लाता है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के देश रूस, मंगोलिया, चाइना, कजाकिस्तान, साइबेरिया से ये भारत में प्रवास करने आते हैं। सबसे पहले उत्तर प्रदेश और फिर राजस्थान के कई हिस्सों में इनका आगमन होता है क्योंकि यहां इन्हें भरपूर भोजन व अनुकूल जलवायु मिलती है।

पक्षीविद् व वाइल्डलाइफ के फोटोग्राफर नवीन करोला ने बताया कि कुरंजा पक्षी की खासियत यह है कि साइबेरिया से लेकर मारवाड़ तक लगभग 6 से 7 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने वाला ये पक्षी न तो अपनी राह भटकते हैं और न ही इनके आने की टाइमिंग बिगड़ती है। पक्षी विशेषज्ञ भी इनकी समय पाबंदी के कायल होते हैं। उन्होंने बताया कि कुदरत ने इन पक्षियों को कुछ विशेष क्षमता है प्रदान की है और इस क्षमता के बल पर कुरंजा साइबेरिया के मौसम में शुरू होने वाले बदलाव को पहले ही समझ लेते हैं।

पक्षीविद् नवीन करोला ने बताया कि कुरंजा एक खूबसूरत पक्षी है। जो सर्दियों में साइबेरिया से मंगोलिया तक फैले प्रदेश से हिमालय की ऊंचाइयों को पार करता हुआ भारत आता है। शीतकालीन ऋतु मैदानों और तालाबों के आसपास व्यतीत करने के बाद ये परिंदे अपने देश वापस लौट जाते है। राजस्थान में हर साल 50 से अधिक स्थानों पर कुरजा पक्षी नजर आते हैं और यह पक्षी यहां के परिवेश में इतना घुल मिल गया है कि इन पर कई जगह तो लोकगीत भी बन चुके हैं। भरतपुर में केवलादेव नेशनल पार्क रूपवास के आसपास खेतों और पड़ोसी जिला धौलपुर के जसुपुरा गांव में भी बड़ी संख्या में कुरंजा परिंदे दिखाई दिए हैं।

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