Chetra Navratri 2023 : नवरात्रि के छठे दिन होती है कात्यायनी की पूजा, दूर होती है विवाह की परेशानी

Chetra Navratri 2023 : चैत्र नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा की छठे स्वरूप कात्याययी को समर्पित है। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने की वजह…

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Chetra Navratri 2023 : चैत्र नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा की छठे स्वरूप कात्याययी को समर्पित है। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने की वजह से इसका नाम कात्यायनी रखा गया है। मां कात्यायनी की पूजा से विवाह संबंधी मामलों के लिए अचूक मानी जाती है। कहा जाता है कि कात्याययी की कृपा से मनचाहा वर और प्रेम विवाह की सभी परेशानियां दूर हो जाती है। कहा जाता हैं देवी कात्यायनी की कृपा जिस जाताक पर प्रसन्न हो जाएं उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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चेत्र नवरात्रि के छठवें दिन का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि के छठे दिन कात्याययी की पूजा का शुभ मूर्हूत गोधूलि मुहूर्त शाम 6:58 पर रहेगा। पूजा का शुभ मूर्हूत 6:18 – दोपहर 03:27 बजे तक रहेगा।
मां कात्यायनी की उपासना
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

मां कात्यायनी की कथा

मां का कात्यायनी नाम कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तप किया। उनकी इच्छा थी मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह मांग स्वीकार कर ली। कुछ वक्त पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी वजह से मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा था।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहां पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी 4 भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाई तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

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