इतिहास के झरोखे से : आज की नहीं, वेदों के समय से चली आ रही है समाज में राजनीतिक व्यवस्था

rajasthan election 2023: भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाने वाले देश का सम्मान हासिल है। संसदीय शासन प्रणाली में जन‌प्रतिनिधियों के निर्वाचन की व्यवस्था है। इसके लिए स्वाधीनता के पश्चात स्वायत्तशासी संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में भारत निर्वाचन आयोग का गठन किया गया।

maharaja darbar | Sach Bedhadak

Rajasthan Election 2023: भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाने वाले देश का सम्मान हासिल है। संसदीय शासन प्रणाली में जन‌प्रतिनिधियों के निर्वाचन की व्यवस्था है। इसके लिए स्वाधीनता के पश्चात स्वायत्तशासी संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में भारत निर्वाचन आयोग का गठन किया गया। आरम्भ में एक सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था थी। लेकिन तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन के कार्यकाल में दो आयुक्तों एमएस गिल एवं जीवी कृष्णामूर्ति की नियुक्ति से आयोग को तीन सदस्यीय स्वरूप दिया गया है। आयुक्त गिल का हाल ही में निधन हुआ है।

स्वाधीन भारत में लिखित संविधान में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया और चुनाव पद्धति से जन‌प्रतिनिधियों को चुनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। इससे राजनीतिक दलों का गठन हुआ। राजनैतिक दलों में वर्चस्व की लालसा में पार्टी में गुटबाजी तथा टूटन का इतिहास सर्वविदित है। इस परिस्थिति में ‘पॉलिटिकल फैमिली’ का अवतारवाद काफी फला-फूला। विशेषकर स्वतंत्र
पार्टी के गठन से राजा-महाराजाओं को चुनावी राजनीति में सक्रिय होने का खुला मौका मिला।

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क्षेत्र विशेष में चुनावी टिकट नहीं मिलने पर फटाफट दूसरी पार्टी से टिकट हासिल करने की जुगाड़ यथावत है। भाई-भतीजावाद और टिकटों की मारामारी में पारिवारिक कलह अथवा हर राज में सता में दखलदांजी की कुटनीति भी इसमे निहित है तो सत्ता के सफर में खूनी रिश्ते भी दरक जाते हैं।

राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य पर झांकें तो विभिन्न जातीय समुदायों से जुड़े राजनीतिक वंशजों की तीसरी चौथी पीढ़ी तक की तस्वीर उभर आती है। मिर्धा परिवार, मदेरणा परिवार, गंगाराम चौधरी परिवार और अब हनुमान बेनीवाल परिवार, खेतसिंह राठौड़, रामसिंह विश्नोई, पायलट परिवार, राजा-महाराजाओं में उदयपुर बीकानेर-जयपुर-भरतपुर-धौलपुर, जैसलमेर-कोटा-करौली-अलवर जोधपुर सहित लघु रजवाड़े, सामंत- जागीरदार घराने भी सत्ता सुख की दौड़ में पीछेनहीं रहे हैं।

इन मंत्रों में मिलता है वैदिक राजनीति का प्रमाण

ये घीताको स्थलाराः कर्माशये मनीषिणः उपस्तीन एवं मध्ये त्वं सर्वान् कृ ष्णमितो जनान् ॥ (अथर्ववेद) अर्थात- राष्ट्रपालक मन्त्रिन् बुद्धिवैभवशाली, रथकार, शिल्पी, आध्यात्मज्ञानी लोगों को यहां चारों ओर उपस्थित करो (निर्वाचन के लिये अपना मत देने के लिये)।

ये राजानो राजकृ तः सूता ग्रामस्यश्च उपस्तीत् वर्णमहमे त्वं सर्वान् कृष्णमितोजनान।। (अथर्ववेद) अर्थात- राजा लोग (जगत में प्रतिष्ठा प्राप्त प्रशासक ), राजकृत (राजा बनाने वाले अथवा निर्वाचित कर राजपद पर आसीन करने वाले), सूत्र (रथ के कु शल संचालक) तथा ग्रामी ग्रामणी (ग्रामनेता) आदि को, हे वर्ण यहां चारों ओर (निर्वाचन हो लिए) उपस्थित करो।

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अथर्ववेद के इन श्लोकों से निर्वाचन प्रणाली की प्राचीनता परिभाषित है जिनमें राजा के चयन का प्रावधान भी निहित है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्राचीन समय में भी राजा चुने जाते थे। अलबता बाद में राजवंश की परम्परा विकसित हुई और युगानुसार साम्राज्यों के उत्थान एवं पतन का इतिहास बना।

गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार