Rajasthan Election 2023: कभी इंदिरा और संजय गांधी का प्रतीक था कांग्रेस का चुनाव चिह्न ‘गाय-बछड़ा’

Rajasthan Election 2023: स्वाधीन भारत में संसदीय प्रणाली के पहले दशक से राज करने वाली कांग्रेस का चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ और ‘चक्र में हलधर’ चुनाव चिह्न के बलबूले केन्द्र में गठित पहली गैर कांग्रेस सरकार तथा वर्तमान में शासनारूढ भाजपा का पूर्ववर्ती चुनाव चिह्न दीपक अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है।

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Rajasthan Election 2023: स्वाधीन भारत में संसदीय प्रणाली के पहले दशक से राज करने वाली कांग्रेस का चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ और ‘चक्र में हलधर’ चुनाव चिह्न के बलबूले केन्द्र में गठित पहली गैर कांग्रेस सरकार तथा वर्तमान में शासनारूढ भाजपा का पूर्ववर्ती चुनाव चिह्न दीपक अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है। अपने पर शासन करने के लिए आम जनता रूपी मतदाता जनप्रतिनिधि का चयन निर्वाचन पद्धति से करते हैं। कम पढ़े लिखे मतदाताओं द्वारा सुविधा से मतदान करने की दृष्टि से प्रत्याशियों के नाम के साथ चुनाव चिह्न प्रणाली को अपनाया गया।

इसीलिए राजनीतिक दलों के लिए चुनाव चिह्न का अत्यधिक महत्व रहा है। इसके लिए निर्वाचन आयोग तथा न्यायालयों तक लम्बी लड़ाई की अजीबो गरीब कहानी रही है। इससे कुछ चुनाव चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा फ्रीज होकर हमेशा के लिए दफन हो गए तो चुनावी दंगल जीतने के लिए नये चुनाव चिह्नअपनाए गए।

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चुनाव प्रचार के दौरान इन चुनाव चिह्नों को लेकर गीत एवं नारे भी लोकप्रिय हुए जिन्हें गुनगुनाते हुए जुलूस निकालने की परम्परा विकसित हुई। तो आइए आज निर्वाचन प्रणाली के अहम किरदार चुनाव चिह्न, उनके महत्व और इतिहास की चर्चा कर ली जाए। स्वाधीनता की लड़ाई में प्रतीक बनाई गई कांग्रेस पार्टी के लिए प्रथम आम चुनाव से बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न अत्यंत भाग्यशाली रही। चूंकि तब भारत कृषि प्रधान की देश की उपमा से विभूषित था इसलिए खेती किसानी के प्रतीक बैलों की जोड़ी चिह्न को उपयुक्त माना गया। मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह मतदाताओं के अनुकूल था।

प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के करिश्माई नेतृत्व की लोकप्रियता और दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न की बदौलत कांग्रेस पार्टी आसानी से शासनारूढ हुई। दो दशक की अवधि पूरी होते-होते इस चुनाव चिह्न की छवि धू‌मिल होती गई। इंदिरा गांधी के राजकाज संभालने के साथ भारत की राजनीतिक व्यवस्था में उथलपुथल का दौर आरम्भ हुआ।

कांग्रेस से छूटी थी ‘दो बैलों की जोड़ी’

वर्ष 1967 में हुए चौथे आम चुनाव में कांग्रेस को विपक्षी दलों की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। तब लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुआ करते थे। चुनाव से पहले और परिणाम के पश्चात गठबंधन के चलते विभिन्न राज्यों में गैर कांग्रेस दलों ने मिलकर शासन सत्ता संभाली। तत्कालीन कांग्रेस की राजनीति में ‘मोम की गुड़िया’ के नाते विभूषित इंदिरा वर्ष 1969 में ग्रेस पार्टी को विभाजन के कगार पर ले आईं।

नतीजतन कांग्रेस का परम्परागत चुनाव चिह्न दो बैलों भी जोड़ी इस विवाद का पहला शिकार हुआ। भारत पाक युद्ध एवं बंगलादेश के उदय के पश्चात वर्ष 1971-72 के चुनाव में इंदिरा गुट से जुड़ी कांग्रेस को गाय और बछड़ा चुनाव चिह्न मिला। कांग्रेस के दूसरे गुट एस निजलिंगप्पा के संगठन को ‘चरखा कातती महिला’ चिह्न दिया गया। लेकिन यह विवाद थमा नहीं। चुनाव- दर-चुनाव कांग्रेस पार्टी टुकड़ों में विभाजित होती गई।

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आपातकाल के पश्चात वर्ष 1977 के चुनाव में इंदिरा गुट का चुनाव चिह्न ‘गाय और बछ‌ड़ा’ इंदिरा एवं उनके छोटे पुत्र संजय गांधी के प्रतीक रूप में समझा जाने लगा। वर्ष 1978 में पार्टी में पुन: विभाजन के दौर में इंदिरा गुट के चुनाव चिह्न ‘गाय और बछड़ा’ की अकाल मौत हुई तथा इसके बदले ‘हाथ’ चुनाव चिह्न मिला। बाद में कतिपय चुनावी असफलता के संदर्भ में चुनाव चिह्न हाथ में भाग्यरेखा नहीं होना भी चर्चित हुआ लेकिन के न्द्र में गठित प्रथम गैर कांग्रेस सरकार के पतन के पश्चात 1980 के चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस को सफलता मिली। तब चुनाव में यह नारा प्रचलित हुआ था “न जात पर न पांत पर, मोहर लगेगी हाथ पर।”

कांग्रेस (स) का चुनाव चिह्न था चरखा

इंदिरा के गुट वाली कांग्रेस के ‘हाथ’ चुनाव चिह्न के किस्से के साथ कांग्रेस के दसरे गुट की कहानी भी अत्यंत दिलचस्प है। तब इस संगठन की कांग्रेस (स) के नाम से पहचान थी। नेतृत्व को लेकर इस गुट में भी समय समय पर परिवर्तन होते रहे। एक समय महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार इस गुट के मुखिया रहे तो असम के कांग्रेस नेता शरत चन्द्र सिन्हा ने नेतृत्व संभाला। शरद पवार की आस्था भी बदलती रही। वह कांग्रेस में पून: सम्मिलित हुए और इंदिरा के सुपुत्र राजीव गांधी की जीवन संगिनी सोनिया गांधी के इटली मूल के मुद्दे को लेकर अलग हुए।

नए दल राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना की। विशेषकर महाराष्ट्र तक सीमित इस पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘घड़ी’ है। कांग्रेस (स) नामक संगठन वर्ष 1989 में वी पी सिंह की अगुवाई में गठित राष्ट्रीय मोर्चा का एक घटक दल रहा और इसका चुनाव चिह्न ‘चरखा कातती महिला’ के स्थान पर के वल चरखा तक सिमट गया।

गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार