रोचक है ‘एमडीएच’ मसाले का सफर, महाशय धर्मपाल गुलाटी ने पाक से आकर भारत में ऐसे कमाया नाम 

भारत में मसालों का इतिहास काफी पुराना रहा है। हम जब भी कोई सब्जी या व्यंजन बनाते हैं तो उनमें मसालों का अहम किरदार होता…

The journey of 'MDH' spice is interesting, Mr. Dharampal Gulati came from Pakistan and earned such a name in India

भारत में मसालों का इतिहास काफी पुराना रहा है। हम जब भी कोई सब्जी या व्यंजन बनाते हैं तो उनमें मसालों का अहम किरदार होता है। मसालें ही हैं, जो व्यंजन को स्वादिष्ट बनाते हैं। लगभग हर घर में एमडीएच के मसाले का प्रयोग अधिक किया जाता है। इस मसाले का भारत में आने तक का सफर काफी रोचक है। आपने अक्सर टेलीविजन पर एक दाढ़ी वाले अंकल को इसका विज्ञापन करते देखा होगा। 

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इनका नाम धर्मपाल गुलाटी है। सिर पर पगड़ी बांधे, सफेद मुछों में इन महाशय को देश का बच्चा-बच्चा भी जानता है। दो साल पहले गुलाटी का निधन हो गया था, इसके बाद कंपनी को उसी तरह चलाना थोड़ा मुश्किल काम था। इस मसाले की शुरूआत कैसे हुई, कहां से हुई तथा इसकी वर्तमान स्थिति क्या है इन्हीं के बारे में विस्तार से जानेंगे आज के कॉर्नर में…  

पाकिस्तान से शुरू हुआ सफर 

इस मसाले की शुरूआत पाकिस्तान से हुई थी। दरअसल धर्मपाल गुलाटी के पिता मसालों का कारोबार करते थे। उनके पिता महाशाय चिन्नीलाल मसाले की एक दुकान चलाते थे। इस दुकान का नाम महाशियान दी हट्टी था। उनके निधन के बाद धर्मपाल गुलाटी ने ही इस कारोबार को आगे बढ़ाया। बाद में इसका नाम एमडीएच हो गया, आज इसी नाम से इस मसाले को जाना जाता है। 

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शायद ही कुछ लोग होंगे जिन्हें पता है कि इस मसाले का नाम महाशियान दी हट्टी है। 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में जन्में धर्मपाल गुलाटी देश विभाजन के समय भारत आ गए थे। इस समय उनके पास केवल 1500 रूपये थे। ऐसे में उनका जीवन यापन करना थोड़ा मुश्किल हो गया था। लेकिन इतने कम रूपयों से भी गुलाटी ने वो कर दिखाया जो लोग सोच भी नहीं पाते।  

तांगा चलाकर किया गुजारा 

धर्मपाल गुलाटी ने कक्षा पांच तक ही पढ़ाई की। वर्ष 1933 में महज 10 साल की उम्र में उन्होंने पढाई छोड़ दी थी। इसके बाद वे अपने पिता के साथ कारोबार में हाथ बटांने लगे। इतनी कम पढ़ाई के बाद भी धर्मपाल गुलाटी ने खूब नाम कमाया। पाकिस्तान से भारत आकर उन्होंने सबसे पहले 650 रूपये में एक तांगा खरीदा। 

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इसी से उन्होंने अपना घर चलाया। तांगे से जितनी कमाई हुई उससे धर्मपाल गुलाटी ने दिल्ली के करोल बाग में अपने पेतृक व्यवसाय को फिर से शुरू किया और आज यह देश का पंसदीदा मसाला बन गया। इसके लिए धर्मपाल गुलाटी को पदम भूषण से भी नवाजा गया। 3 दिसम्बर 2020 को हृदय गति रुक जाने से महाशय का निधन हो गया था।

व्यवसाय के साथ दानी भी

कारोबारी होने के साथ ही, धर्मपाल गुलाटी एक धार्मिक और मानवीय इंसान भी थे। वे अपनी कमाई का एक निश्चत हिस्सा दान भी किया करते थे। उनका मसाले का कारोबार धीरे-धीरे इतना फैल गया कि आज ऐसी कई फैक्ट्रियां हैं, जहां मसाला बनता है। भारत का MDH मसाला पूरी दुनिया में निर्यात होता है।

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