ISRO इतिहास रचने को तैयार… जुलाई के दूसरे हफ्ते उड़ान भरेगा Chandrayaan-3, जानें-मून मिशन क्यों खास?

इसरो इतिहास रचने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसरो ने अपने बहुप्रतीक्षित मून मिशन यानी चंद्रयान-3 के लॉन्च की तारीख तय कर दी है।

Chandrayaan-3

Chandrayaan-3 : नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इतिहास रचने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसरो ने अपने बहुप्रतीक्षित मून मिशन यानी चंद्रयान-3 के लॉन्च की तारीख तय कर दी है। चंद्रयान-3 को 13 जुलाई को प्रक्षेपित किए जाएगा, जिसके जरिये चंद्रमा की सतह पर एक ‘रोवर’ उतारा जाएगा। चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित उतरने और वहां गतिविधियां करने की क्षमता प्रदर्शित करने के लिए चंद्रयान-2 के बाद अब चंद्रयान -3 भेजा जा रहा है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो भारत चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले चीन, अमेरिका और रूस चंद्रमा की सतह पर अपना स्पेसक्राफ्ट की सफल लैंडिंग करा चुके हैं।

इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 13 जुलाई को दोपहर 2.30 बजे प्रक्षेपित किया जाएगा। हालांकि, इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ का कहना है कि इसकी तिथि पर अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और यह 12 से 19 जुलाई के बीच की तिथि पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि कोई सटीक तिथि घोषित नहीं की गई है। हम सभी जांच पूरी होने के बाद उस सटीक तिथि पर पहुंचेंगे…अंतिम तिथि इस रेंज के अंदर होगी। इसरो ने कहा कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान पूरी तरह से तैयार है। अभी रॉके ट के साथ इसे जोड़ा जा रहा है तथा संभवत: यह कार्य और दो-तीन दिन में पूरा हो जाएगा, फिर हमें जांच कार्यक्रम में जाना है। उन्होंने कहा कि रॉकेट से जोड़े जाने के बाद सिलसिलेवार जांच भी की जाएगी।

चंद्रमा पर लेंडर और रोवर भेजेंगे, ऑर्बिटर को नहीं

इसरो ने स्पेस शिप को चंद्रमा तक पहुंचाने के लिए तीन हिस्से तैयार किए हैं। चंद्रयान-3 के जरिये एक ‘लैंडर’ और एक ‘रोवर’ को चंद्रमा पर भेजा जा रहा है। प्रणोदन मॉड्यूल, ‘लैंडर’ और ‘रोवर’ को 100 किलोमीटर तक चंद्रमा की कक्षा में ले जाएगा। इसमें, चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के ध्रुवीय मापन का अध्ययन करने के लिए एक ‘स्पेक्ट्रो-पोलरमेट्री’ पेलोड भी जोड़ा गया है। हालांकि, चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर भी था। लेकिन, तीसरे मिशन पर इसे नहीं भेजा जाएगा। क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पहले से ही चंद्रमा के चक्कर काट रहा है। ऐसे में उसी का इस्तेमाल चंद्रयान-3 में किया जाएगा।

जानें-क्यों खास है मून मिशन?

चीन, अमेरिका और रूस तो चांद पर पहुंच चुका है। लेकिन, भारत काफी समय से चंद्रमा पर पहुंचने का सपना देख रहा है। इसरो ने पहली बार साल 2008 में चंद्रयान-1 लांच किया था। लेकिन, वो चंद्रमा की कक्षा तक ही पहुंच पाया था। इसके बाद भारत ने साल 2019 में फिर से प्रयास किया। लेकिन, चंद्रयान-2 चांद पर लैंड होने से पहले ही रोवर में खराबी के चलते असफल हो गया था। ऐसे में अब इसरो फिर से चांद तक पहुंचने की कोशिश में जुटा हुआ है। चांद तक पहुंचने के लिए इसरो का यह तीसरा मिशन है, इसीलिए इसे चंद्रयान-3 नाम दिया गया है। ऐसे में इसरो का मून मिशन काफी अहम माना जा रहा है।

चांद पर जाने से पहले चंद्रयान-3 की अग्नि परीक्षा

मिशन को सफल बनाने के लिए इसरो ने इस बार कई अहम कदम उठाए है। चंद्रयान-2 की तरह चंद्रयान-3 में एक लैंडर और एक रोवर शामिल होगा। लेकिन, इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा। कम्युनिकेशन रिले सेटेलाइट की तरह व्यवहार करने के लिए डिजाइन किया गया प्रोपेलेंट मॉड्यूल, लैंडर और रोवर को तब तक ले जाएगा जब तक कि अंतरिक्ष यान 100 किमी की चंद्र कक्षा में न हो जाए। चांद पर उड़ान भरने से पहले चंद्रयान-3 को कई कठोर परीक्षण और सत्यापन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा है। चंद्रयान-3 ने लांचिंग से पहले टेस्टिंग प्रक्रिया पार कर ली है और सभी टेस्टों में सफल रहा है। लांचिंग व्हीकल के ऊपरी फेज को रफ्तार देने के लिए इसमें लगाया गया क्रायोजेनिक सीई-20 इंजन की टेस्टिंग भी सफल रही है।

615 करोड़ की लागत से तैयार हुआ चंद्रयान-3

इसरो का चंद्रयान-3 करीब 615 करोड़ रुपए की लागत से तैयार हुआ है। हालांकि, माना जा रहा है कि कुल लागत करीब एक हजार करोड़ रुपए आएगी। चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल पर करीब 250 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं, जबकि लांचिंग पर 365 करोड़ रुपए खर्च होंगे। चंद्रयान-2 की कुल लागत 978 करोड़ रुपए थी। जबकि चंद्रयान-1 पर 386 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।

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