नहीं रहे हरित क्रांति के जनक MS स्वामीनाथन, 98 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

भारत को हरित क्रांति की सौगात देने वाले महान वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन (MS Swaminathan) का गुरुवार को 98 साल की उम्र में निधन हो गया।

MS Swaminathan

नई दिल्ली। भारत को हरित क्रांति की सौगात देने वाले महान वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन (MS Swaminathan) का गुरुवार को 98 साल की उम्र में निधन हो गया। MS स्वामीनाथन ने सुबह करीब 11.30 बजे चेन्नई स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है।

उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, विभिन्न क्षेत्र के लोगों और किसानों ने दुख व्यक्त किया है। उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन का पिछले साल निधन हो गया था। उनकी बेटी सौम्या स्वामीनाथन, विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक रह चुकी हैं।

स्वामीनाथन का नाम देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। कृषि और किसानों के प्रति स्वामीनाथन ने बहुत योगदान दिया था। आजादी के बाद हरित क्रांति के जरिए उन्होंने खाद्यान्न की कमी झेल रहे भारत को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया था। वह राज्यसभा के सांसद भी रहे। कोरोना के दौरान उनके कार्यों की काफी चर्चा हुई थी।

भारत में हरित क्रांति का अगुआ बने स्वामीनाथन

एम. एस. स्वामीनाथन वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और स्वीकार किया। इस कार्य द्वारा भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता था। यह मैक्सिकन गेहूं की एक किस्म थी, जिसे स्वामीनाथन ने भारतीय खाद्यान्न की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले अपनाने के लिए स्वीकार किया। इसके कारण भारत के गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। इसलिए स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है।

स्वामीनाथन के प्रयत्नों का परिणाम यह है कि भारत की आबादी में प्रतिवर्ष पूरा एक ऑस्ट्रेलिया समा जाने के बाद भी खाद्यान्नों के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है। भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है।

1925 में हुआ था मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन का जन्म

7 अगस्त 1925 को कुम्भकोणम में जन्मे मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन भारत के आनुवंशिक वैज्ञानिक थे। इन्हें भारत की हरित क्रांति का जनक माना जाता है। उन्होंने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए। उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

पद्म भूषण के अलावा इन अवॉर्ड से भी नवाजा

इसके अलावा एम. एस. स्वामीनाथन को ‘विज्ञान एवं अभियांत्रिकी’ के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1967 में पद्म श्री और 1989 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। साथ ही उन्हें 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए मैग्सेसे पुरस्कार, 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार, 1987 में पहला विश्व खाद्य पुरस्कार, 1991 में अमेरिका में टाइलर पुरस्कार, 1994 में पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का होंडा पुरस्कार, 1997 में फ्रांस का ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल, 1998 में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का हेनरी शॉ पदक, 1999 में वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार और 1999 में ही यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक से सम्मानित किया गया था।

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