सोशल मीडिया के रास्ते हो रहा FAKE का ATTACK, ऐसे रोकें फेक न्यूज को

अध्ययन के अनुसार सबसे अधिक यानी 42.7 प्रतिशत फेक न्यूज लिखित सूचनाओं के रूप में सामने आती हैं उसके बाद वीडियो का नंबर आता है। कोविड काल के दौरान हेल्थ से जुड़ी फेक न्यूज की तादाद काफी बढ़ गई थी। फेक न्यूज लिखित के अलावा फोटो, ऑडियो, वीडियो के रूप में शामिल आती है।

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आज के डिजिटल दौर में चीजें जितनी आसान हो गई हैं, वहीं उनके गलत प्रयोग उतने ही भारी पड़ रहे हैं। इसका एक गंभीर उदाहरण है फेक न्यूज। फिर बात दुनिया की हो, देश की हो या प्रदेश की। फेक न्यूज के प्रसार ने हर बार नुकसान ही पहुंचाया है। ऐसा नुकसान की डैमेज कं ट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। बस एक क्लिक और हजारों-लाखों तक गलत जानकारी को सच्चाई के तौर पर पेश कर दिया जाता है। लोग बिना सोचे समझे उसे फॉरवर्ड भी कर देते हैं। देखते ही देखते सोशल मीडिया अकाउंट्स उस फेक न्यूज को रियल मनवा देते हैं।

इसके बाद चर्चा का दौर शुरू हो जाता है, कहीं-कहीं तो बतौर प्रतिक्रिया हिंसा या अशांति जैसा माहौल भी पैदा हो जाता है। उदाहरण हम ले सकते हैं सोशल मीडिया पर तेजी से फै लने वाली फेक न्यूज मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार रही हैं। ये तो एक उदाहरण है, इसके अलावा कोरोना काल में भी ऐसी फेक न्यूज खूब बांटी गई है। स्वास्थ्य, राजनीति, रक्षा, सामुदायिक शांति जैसे मुद्दों को भड़काने की कोशिश की जाती रही हैं। ऐसे में अब जरूरत है जागरूक होने की, किसी भी खबर को पढ़ लिखकर फैक्ट चेक करके आगे बढ़ाने की।

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खास एजेंडे के तहत फैलाई जाती हैं ऐसी खबर

रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म ने भारत में डिजिटल समाचारों पर एक अध्ययन प्रकाशित किया था। यह अध्ययन उन लोगों पर किया गया जो अंग्रेजी समझते हैं और इंटरनेट इस्तेमाल करने में सक्षम हैं। सर्वे में 68 फीसदी लोगों ने कहा कि ऑनलाइन न्यूज के लिए मोबाइल फोन्स पर निर्भर हैं। हालांकि 57 फीसदी लोगों को ऑनलाइन समाचारों की सत्यता पर संदेह होता है।

सर्वे में हिस्सा लेने वाले 66 फीसदी भारतीय प्रकाशकों और 64 प्रतिशत लोग सरकार से उम्मीद करते हैं कि उन्हें फेक न्यूज की समस्या को हल करना चाहिए। इस सर्वे के अनुसार भारत में 68 फीसदी लोग स्मार्टफोन के जरिए ऑनलाइन समाचार प्राप्त करते हैं। कं प्यूटर पर समाचार पढ़ने वालों की संख्या 17 फीसदी रही। मोबाइल पर खबरें पढ़ने के मामले में भारतीय सबसे आगे हैं। फेक न्यूज के सवाल पर 51 फीसदी ने कहा कि जब एक खास एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए तथ्य तोड़े-मरोड़े जाते हैं तो उन्हें चिंता होती है।

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दुनिया चितिंत, भारत पांचवें स्थान पर

फेक न्यूज का जाल दुनिया भर के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। गत एक साल में फेक न्यूज को लेकर चिंताएं अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। ‘एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट’ में दावा किया गया है कि वैश्विक स्तर पर 76 फीसदी लोगों ने गलत सूचनाओं या फेक न्यूज का इस्तेमाल एक हथियार की तरह किए जाने को लेकर चिंता व्यक्त की।

इस मामले में स्पेन 84 फीसदी के साथ शीर्ष पर रहा। वहीं, भारत 82 फीसदी के साथ पांचवें स्थान पर रहा। नीदरलैंड् स, जापान, फ्रांस, यूनाइटेड किं गडम (यूके) और जर्मनी फेक न्यूज के मामले में सबसे कम चितिंत नजर आए।

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राजनीतिक लाभ से जुड़ रहे हैं तार

फ्यूचर ऑफ इंडिया फाउंडेशन की ओर से हाल ही में फेक न्यूज के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गई। इसमें सामने आया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भ्रामक जानकारियों के जरिए खास राजनीतिक और व्यावसायिक एजेंडों को पूरा करने के लिए एक संगठित तंत्र तैयार किया गया है। इसमें कहा गया कि सोशल मीडिया का स्ट्रक्चर इस वक्त ऐसा नजर आता है, जिससे इसका उपयोग भ्रामक जानकारियों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए आसानी से हो सकता है।

जिस सोशल मीडिया का उपयोग इंफॉर्मेशन सिस्टम को और लोकतांत्रिक बनाने में हो सकता था, उसका उपयोग अब भ्रामक या झूठी खबरों के एक संगठित तंत्र के रूप में होता दिख रहा है। सोशल मीडिया पर झूठी खबरों के साथ संगठित तौर पर न सिर्फ नफरत फै लाई जा रही है, बल्कि खुलेआम गलत कं टेंट भी अब मेन स्ट्रीम की तरह दिखने लगा है।

मोदी सरकार ने लगाए प्रतिबंध

फेक न्यूज फै लाने वाले यूट्यूब चैनलों पर मोदी सरकार ने पिछली साल दिसंबर में सख्ती दिखाना शुरू किया था। भारत सरकार के कें द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने जनवरी में 35 यूट्यूब चैनलों और 2 वेबसाइटों को ब्लॉक कर दिया। इन चैनलों और वेबसाइट्स को पाकिस्तान से संचालित किया जा रहा था। इन चैनलों और वेबसाइट्स के माध्यम से भारत विरोधी दुष्प्रचार फैलाया जा रहा था। अप्रैल में 22 यूट्यूब चैनलों को भारत में बैन किया गया।

अगस्त तक फेक न्यूज फै लाने वाले 102 यूट्यूब चैनल, वेबसाइट्स सोशल मीडिया अकाउंट को प्रतिबंधित कर दिया गया। इसके बाद सितंबर में देश में सांप्रदायिक वैमनस्य फै लाने के प्रयास में धार्मिक समुदायों के खिलाफ घृणा फै लाने के लिए सामग्री में छेड़छाड़ करने और फर्जी खबरें प्रसारित करने के लिए 10 यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया गया।

सबसे ज्यादा झांसे में आते हैं बुजुर्ग

अब बात उन लोगों की जो फेक न्यूज के झांसे में सबसे ज्यादा आते हैं। अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओंने एक अध्ययन किया, उसमें पाया गया कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान 8.5 फीसद अमेरिकी नागरिकों ने फेसबुक पर फेक न्यूज के लिंक शेयर किए थे। इसके मुताबिक, 18 से 29 साल की उम्र के युवाओं में मात्र तीन फीसदी ने ऐसी खबरों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किया। वहीं 65 साल से ज्यादा की उम्र के 11 फीसदी लोगों ने इन्हें शेयर किया।

सेहत से जुड़ी फर्जी खबरें भी अव्वल

कुछ समय पूर्व ढाका विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की ओर से फेक न्यूज से जुड़े विषयों पर एक शोध किया गया था। इस शोध में फेक न्यूज को सात कैटेगरी में बांटकर अध्ययन किया गया। इनमें स्वास्थ्य संबंधी फर्जी खबरें सूची में सबसे ऊपर रहीं। इन खबरों में दवा, चिकित्सा, स्वास्थ्य सुविधाएं, वायरल संक्रमण और डॉक्टर मरीज के मुद्देशामिल हैं।

एक खास बात और सामने आई। अध्ययन के अनुसार सबसे अधिक यानी 42.7 प्रतिशत फेक न्यूज लिखित सूचनाओं के रूप में सामने आती हैं उसके बाद वीडियो का नंबर आता है। कोविड काल के दौरान हेल्थ से जुड़ी फेक न्यूज की तादाद काफी बढ़ गई थी। फेक न्यूज लिखित के अलावा फोटो, ऑडियो, वीडियो के रूप में शामिल आती है।

यूं खोलें झूठ की पोल…

फेक न्यूज के खास पैटर्न पर दें जोर

फेक न्यूज के बढ़ते दायरे के विरुद्ध इसे रोकने के लिए भी प्रयास जारी हैं। एक शोधकर्ताओं की टीम ने अपने एक अध्ययन में पाया था कि सही समाचारों के संदेशों का अपना अलग मिजाज होता है, जो उसे विभिन्न प्रकार के फर्जी खबरों से अलग करता है। इनमें शैली भी एक है। झूठी खबरों में आम तौर पर व्याकरण की काफी गलतियां होती हैं, उनमें तथ्यों की कमी होती है और भावनात्मक पक्षों को ज्यादा तूल दिया जाता है। इसके साथ ही उनकी हेडलाइंस भी बेहद भ्रामक होती हैं।

वेब एड्रेस के जरिए भी पहचानें

इसके अतिरिक्त फेक न्यूज की पहचान उनके स्रोतों से भी की जा सकती है। सही और गलत खबरों को इस आधार पर भी परखा जा सकता है कि आखिर किन सूत्रों का चयन किया गया है और उनका इस्तेमाल कैसे किया गया है। फेक न्यूज के अक्सर नॉन-स्टैंडर्ड वेब एड्रेस होते हैं और पर्सनल ईमेल संपर्क के लिए दी जाते हैं।

सोशल मीडिया से अधिक फै लती हैं

नेटवर्क में फर्क के आधार पर भी फेक न्यूज की पहचान की जा सकती है। आम तौर पर सोशल मीडिया पर ही ऐसी फेक न्यूज सबसे तेजी से फै लती हैं। सोशल मीडिया पर फैलने के बाद ही ये मेनस्ट्रीम मीडिया तक पहुंचती हैं। ऐसे में फेक न्यूज की पहचान के लिए अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत होती है और इसे नेटवर्क, भाषा, स्रोत आदि के आधार पर पहचाना जा सकता है।

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