पैरों से लिखी किस्मत: बिना हाथ वाले भरत ने स्टेट पैरा ओलंपिक में जीता ब्रॉन्ज…देवेंद्र झाझड़िया हैं प्रेरणास्त्रोत

Jaipur News: कहते है प्रतिभा कभी किसी की मोहताज नहीं होती, इंसान में हौसला हो तो हर मंजिल आसान हो जाती है. इस कहावत को…

2 | Sach Bedhadak

Jaipur News: कहते है प्रतिभा कभी किसी की मोहताज नहीं होती, इंसान में हौसला हो तो हर मंजिल आसान हो जाती है. इस कहावत को सीकर जिले के दांतारामगढ़ तहसील के श्यामपुरा गांव निवासी भरत सिंह ने सच साबित कर दिखाया है. भरत के साथ महज 6 साल की उम्र में हुए एक हादसे में उसने अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे, लेकिन उसने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और पैरों से लिखते-लिखते न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि 10 किलोमीटर की स्टेट पैरा ओलंपिक में ब्रोंज मेडल जीता और दिन रात पढ़ाई कर कृषि पर्यवेक्षक भी बने

6 साल की उम्र में भरत में खोए अपने दोनों हाथ

भरत सिंह शेखावत का जन्म बेहद गरीब परिवार में 19 जून 1993 में हुआ था. भरत के नाना नानी के पास बुढ़ापे का सहारा ना होने के कारण भरत के पिता ने उसे ननिहाल भेज दिया. इस कारण भरत वही पढता और वही रहता. एक दिन दोस्तों के साथ स्कूल जाते वक्त बिजली के खंबे को छूने से करंट लगने से उसके दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गया.

करंट लगने से हुई गंभीर हालत के कारण भरत को जयपुर एसएमएस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. चिकित्सकों के अनेकों प्रयास के बावजूद उसके दोनों हाथ नहीं बचाये जा सके. उस वक्त भरत की उम्र 6 साल थी. 2 महीने एसएमएस हॉस्पिटल में रहने के बाद भरत को घर भेज दिया गया. भरत 2 साल तक अपने कमरे में ही रहा.

दोनों हाथ कटे तो पैरो से लिखना सिखा

भरत ने दोस्तों को स्कूल जाते देखा तो उसने भी पढ़ने की ठानी. भरत ने पास ही के कस्बे किशनगढ़ रेनवाल के एक निजी स्कूल में अपना दाखिला कराया, लेकिन यह आसान न था. स्कूल के निदेशक ने कहा कि तुम्हारे तो हाथ ही नहीं है कैसे पढ़ाई करोगे लेकिन भरत ने अब कुछ करने की ठान ली थी, भरत ने कहा मेरे हाथ नहीं तो क्या हुआ मैं पैरो से लिखूंगा. कई साल की मेहनत और अभ्यास के बाद भरत पैर से लिखना सिख गया.

वह कक्षा 6 से कक्षा 12 तक घर से स्कूल तक लगभग 10 किलोमीटर तक पैदल जाता और हमेशा कक्षा में भी टॉप रहता. जब वो स्कूल जाता तो कुछ लोग उसे चिढ़ाते थे कहते की कि तुम्हारे तो हाथ ही नहीं है क्या कर लोगे तुम इतना पढ़ लिख कर.

भरत के ऊपर दुखों का पहाड़ तो तब टूटा जब उसकी मां का 2021 में निधन हो गया, जिसके बाद उसकी दादी ने उसके दैनिक कार्य किए. स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद भरत में कॉलेज में दाखिला लिया और यह प्रक्रिया सतत रही.

ओलंपियन देवेंद्र झाझरिया से ली प्रेरणा

2016 में ओलंपिक गेम में देवेंद्र झाझरिया पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लेकर आए थे बस वही से भरत ने सोचा कि अब मुझे देश के लिए मेडल लाना है. भरत ओलंपिक की तैयारी के लिए अपनी बहन के पास जयपुर चला गया और करीब 1 साल तक दौड़ की तैयारी की और 10 किलोमीटर की स्टेट पैरा ओलंपिक दौड़ में भरत ने ब्रोंज मेडल जीता.

बिना हाथों वाला कृषि पर्यवेक्षक बनकर मिसाल बना भरत

स्टेट पैरा ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद भरत ने जयपुर में ही एक निजी कोचिंग में 2018 में कृषि पर्यवक्षक की तैयारी की. लगभग 2 साल कड़ी मेहनत के साथ भरत पहले ही प्रयास में 300 नंबर लाकर कृषि पर्यवेक्षक बन गया अभी भरत सिंह जयपुर के ही झोटवाड़ा में कृषि विभाग के ऑफिस में कार्यरत है. भरत अब अपने दैनिक क्रिया के काम और ऑफिस के काम खुद करता है.