World Sparrow Day: राजस्थान में चलाए जा रहे गौरैया के संरक्षण के लिए कई अभियान, 3 साल में जयपुर में लगाए गए हजारों घोंसले   

जयपुर। घरों के आंगन में चहचहाती गौरैया धीरे-धीरे शहरों से लगभग गायब हो गई है। गौरैया के संरक्षण के लिए कई अभियान चलते हैं, बावजूद…

World Sparrow Day today, many campaigns for the protection of sparrows are being run in Rajasthan

जयपुर। घरों के आंगन में चहचहाती गौरैया धीरे-धीरे शहरों से लगभग गायब हो गई है। गौरैया के संरक्षण के लिए कई अभियान चलते हैं, बावजूद इसके गौरैया की संख्या लगातार कम होती जा रही है। जयपुर के पृथ्वी सिंह ने गौरैया संरक्षण के लिए अनूठी पहल शुरू की है। ये बीते तीन वर्षों से खुद के खर्चे से (World Sparrow Day) गौरैया के लिए घोंसले बनाकर आसपास के पार्क, जंगल क्षेत्र और घरों में लगा रहे हैं। पृथ्वी सिंह ने बताया कि अब तक जयपुर में 10 हजार से अधिक घोंसले बनाकर लोगों को वितरित किए हैं और आसपास लगाए हैं। इसका परिणाम भी सुखद निकला है। 

जिन स्थानों पर तीन वर्ष पहले घोंसले लगाए गए थे, वहां आज हजार गौरैया का पुनर्वास हो चुका है। गौरतलब है कि गौरैया की घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्त प्राय प्रजातियों में शामिल कर दिया। इसी क्रम में 20 मार्च 2010 को विश्व गौरैया दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया। इसके बाद से हर वर्ष 20 मार्च विश्व गौरेया दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वेस्ट मटेरियल से बनाते हैं घोंसले पृथ्वी ने बताया कि बाजार में बने हुए घोंसले खरीदकर लगाने में अधिक खर्च आता है। बजट अधिक नहीं होने के कारण टीम के सदस्यों के साथ मिलकर कागज, प्लास्टिक की वेस्ट बोतलों, घर से बाहर निकाले हुए वेस्ट मटेरियल से घोसलेंबना रहे हैं। उन्होंने बताया कि गौरैया पेड़ों पर घर नहीं बनाती, वो घर की दीवार रोशनदान या छोटे बड़े छेद में घोसला बनती है। उसी का ध्यान रखते हुए जो घोंसले बनाते हैं, उसके दरवाजे की साइज सवा इंच से डेढ़ इंच होती है, ताकि गौरैया आसानी से अंदर जा सके और उसमें घास-फूस से अपना घोसला बना सके। पृथ्वी ने बताया कि गौरैया संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान में आमजन को घर पर वेट मटेरियल से घोसला बनाने और उसे लगाने की जानकारी भी दी जाती है।

इसलिए विलुप्त हो रही गौरैया

गौरैया सामान्यतः मनुष्य के आसपास ही रही है। भारत में इनकी 5 प्रजातियां मिलती हैं। पृथ्वी ने बताया कि हमारी आधुनिक जीवन शैली गौरैया को सामान्य रूप से रहने में बाधा बन गई। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, टेलीफोन टावरों से निकलने वाली तरंगें, घरों में सीसे की खिड़कियां इनके जीवन के लिए प्रतिकूल नहीं हैं। पक्षी विशेषज्ञ कमल लोचन ने बताया कि गौरेया मनुष्य के साथ उनके घर में रहने वाली पक्षी है। उसे घर बनाने के लिए छोटे छेद चाहिए, लेकिन मकानों की डिजाइन ऐसी बनाई जा रही है जो घोंसले को बनाने में बाधक है। वहीं, घर-गांव की गलियों का पक्का होना भी इनके जीवन के लिए घातक है। ध्वनि प्रदषूण भी गौरैया की घटती आबादी का एक प्रमुख कारण है।

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