Rajasthan Assembly Election 2023 : पूनिया-राजे की गुटबाजी पर सख्त केंद्रीय नेतृत्व, ‘पर्सनल’ एजेंडे को किनारे रखने की दी नसीहत

Rajasthan Assembly Election 2023 : राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा अपनी सभी कमियों को दुरुस्त कर लेना चाहती है। केंद्रीय नेतृत्व को भी पता…

Rajasthan Assembly Election 2023 : पूनिया-राजे की गुटबाजी पर सख्त केंद्रीय नेतृत्व, ‘पर्सनल’ एजेंडे को किनारे रखने की दी नसीहत

Rajasthan Assembly Election 2023 : राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा अपनी सभी कमियों को दुरुस्त कर लेना चाहती है। केंद्रीय नेतृत्व को भी पता है कि जगजाहिर हो रही प्रदेश भाजपा की अंदरूनी कलह से चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके लिए पार्टी हाईकमान ने प्रदेश के शीर्ष नेताओं की क्लास लेनी भी शुरू कर दी है। बीते शुक्रवार को राजस्थान भाजपा कोर कमेटी की बैठक दिल्ली में हुई थी। बैठक से पहले जिस बात का अंदेशा लगाया जा रहा था वही हुआ। दरअसल भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान बीजेपी की पार्टी में हो रही गुटबाजी पर एक बार फिर क्लास ली है तथा पार्टी के नेताओं को पर्सनल एजेंडा छोड़कर पार्टी के एजेंडे पर चलने की नसीहत दी है।

पुनिया-राजे की गुटबाजी का उठा मुद्दा

यह तो सर्वविदित है कि पार्टी में वसुंधरा राजे-सतीश पूनिया की गुटबाजी पार्टी को चुनाव में नकारात्मक नतीजों पर ले जा सकती है। इसके लिए कई बार भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इन दोनों नेताओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से समझा चुकी हैं। कई बार सख्ती दिखाते हुए कड़े शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। 

Rajasthan Assembly Election 2023 : पूनिया-राजे की गुटबाजी पर सख्त केंद्रीय नेतृत्व, ‘पर्सनल’ एजेंडे को किनारे रखने की दी नसीहत

भाजपा के केंद्रीय मुख्यालय पर यह बैठक करीब दो घंटे चली। जेपी नड्डा ने इस बैठक की अध्यक्षता की। यही नहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी इस बैठक में मौजूद रहे। इस बैठक में अमित शाह व जेपी नड्डा ने पूनिया-राजे की यात्राओं को लेकर भी एकजुटता का पाठ पढ़ाया है। बता दें कि पिछले दिनों राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने अकेले ही रामदेवरा समेत कई जिलों का दौरा किया था व शक्ति प्रदर्शन  किया था। तो वहीं वसुंधरा राजे देवदर्शन यात्रा पर रही थीं जिसमें उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत दिखाई थी।

अब ‘निजी’ नहीं होगी कोई यात्रा

पार्टी हाईकमान ने बगैर किसी यात्रा का जिक्र किए कहा कि अगर किसी को भी अपने स्तर से कोई आंदोलन या कार्यक्रम या यात्रा-दौरा भी करना है तो उसके लिए पार्टी को पहले  से अवगत कराना होगा इसके साथ ही पार्टी के पदाधिकारियों को भी भरोसे में लेना होगा। ध्यान रहे कि कोई पार्टी के सदस्य का कोई भी कार्यक्रम जिसमें लोगों का समर्थन जुटाना हो वह निजी नहीं हो सकता।

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भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की इस नसीहत की जद में राजस्थान प्रभारी अरूण सिंह का बयान भी आ गया जिसमें उन्होंने वसुंधरा-पूनिया की यात्राओं  को लेकर कहा था कि दौरे या यात्रा किसी की भी हों अगर इससे लोगों का समर्थन मिलता है इससे पार्टी को ही फाय़दा होगा। अब अगर नड्डा की इस नसीहत पर गौर करें तो यह प्रतीत होता है कि उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि ये यात्राएं भले ही पार्टी को समर्थन दिला रही हों लेकिन इससे पार्टी की अंदरूनी कलह बाहर नहीं दिखनी नहीं चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव…सीएम कौन

भाजपा कोर कमेटी की बैठक में पार्टी नेतृत्व ने यह भले ही अपने नेताओं से कहा हो कि उनके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा करिश्माई चेहरा है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहीं आकर ठहर जाता है कि चुनाव तो मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा लेकिन सीएम का चेहरा कौन होगा। क्योंकि अगर आलाकमान खुद ही सीएम चेहरा घोषित कर दे तो यह गुटबाजी तो अपने आप ही खत्म हो जाएगी। जिस तरह से पार्टी में सीएम के कई फेस की चर्चाएं राजनीतिक गलियारे में चल रही हैं। उस पर राजस्थान के सीएम  अशोक गहलोत तक ने कह दिया है कि भाजपा में तो कई 6-7 सीएम फेस हैं। 

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इस बैठक में प्रधानमंत्री के 1 नवंबर को प्रस्तावित बांसवाड़ा के मानगढ़ दौरे की तैयारियों पर भी चर्चा हुई। इस दौरे के लिए गुजरात और मध्यप्रदेश से सटे मानगढ़ धाम में आदिवासियों की भीड़ जुटाने के लिए भी प्रदेश भाजपा को निर्देश दिए गए हैं। इस बैठक से प्रधानमंत्री आदिवासियों को साधने की कोशिश करेंगे। 

सीएम पद के लिए अभी और इंतजार…

राजनीतिक जानकारों की माने तो यह भाजपा का सीएम पद के चेहरे को लेकर छिड़ी रार है। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि सतीश पूनिया के नेतृत्व या अध्यक्षता में हुई बैठकों से वे अक्सर नदारद रहती हैं। पार्टी कार्यकर्ता भी दबी जुबान में ही प्रदेश भाजपा के नेतृत्व पर सवाल खड़े करते रहते हैं। सीएम के पद के दावेदार तो गजेंद्र सिंह शेखावत भी बताए जाते हैं, लेकिन ये नाम यहीं सीमित नहीं हैं इनके अलावा केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया भी मुख्यमंत्री बनने की दबी चाहत रखते हैं।

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बात यहां तक भी पहुंची है कि सतीश पूनिया पूरे लाव-लश्कर के साथ अपनी चुनानी रैलियां कर रहे हैं। लेकिन वसुंधरा राजे अकेले ही इन दौरों पर निकल गई हैं, इसे भी शक्ति प्रदर्शन से जोड़ कर देखा जा रहा है।लेकिन आलाकमान भी हर बार प्रदेश के इन दोनों नेताओं को एकजुटता का पाठ पढ़ा देता है। बहरहाल अब देखना यह है कि आने वाले समय  भाजपा और वसुंधरा राजे की रणनीति क्या उन्हें चुनाव मे जीत दिला पाती है।

चुनावों को देखते हुए हर विधानसभा क्षेत्र पर रहेगा फोकस

इस बैठक में गहलोत सरकार के 4 साल पूरे होने के विरोध में भाजपा की जनआक्रोश रैली को लेकर भी चर्चा हुई। साथ ही विधानसभा क्षेत्रों पर फोकस करते हुए चुनावी रणनीति पर भी चर्चा हुई। साथ ही चुनाव अभियान का बिगुल फूंकने का भी फैसला लिया गया। यह भी हो सकता है कि इस जनआक्रोश रैली को धार देने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के नेता भी शिरकत करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो मानगढ़ दरे पर इस जनआक्रोश रैली का समापन ही करेंगे। 

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