मराठा शासक ने की गणेशोत्सव की शुरुआत, जानिए गणेश चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा और इतिहास

सनातन धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक गणेश चतुर्थी का त्यौहार है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गणपति का जन्म हुआ हुआ था। हमारे जीवन में किसी भी शुभ कार्य की शुरु गणेश भगवान से होती है।

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Ganesh Chaturthi 2023: सनातन धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक गणेश चतुर्थी का त्यौहार है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गणपति का जन्म हुआ हुआ था। हमारे जीवन में किसी भी शुभ कार्य की शुरु गणेश भगवान से होती है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के रुप में मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को मनाई जाएगी।

डण्डा चौथ के रुप में जानते है लोग

लोक भाषा में इस त्योहार को डण्डा चौथ भी कहते है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विद्या-बुद्धि के प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, सिद्धिदायक, सुख-समृद्धि और यश-कीर्ति देने वाले देवता के रुप में पूजा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’और स्वास्तिक को भी साक्षात श्री गणेश जी का रूप माना गया है। तभी तो कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत इनसे की जाती है।

गणेश चतुर्थी का देश में इतिहास

गणेशोत्सव की शुरुआत देश में महाराष्ट्र की राजधानी पुणे से हुई थी। गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा हुआ है। लोगों का ऐसा कहना है कि भारत में मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने के लिए छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की।

ब्रिटिश हुकूमत ने लगा दी थी रोक

छत्रपति शिवाजी द्वारा शुरु किए गए इस महोत्सव को मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेश महोत्सव रुप में मनाने लगे। गणेश चतुर्थी के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ ही दान पुण्य भी करते थे।

पेशवाओं के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी लेकिन फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को दोबारा मनाने की शुरूआत की। इसके बाद 1892 में भाऊ साहब जावले द्वारा पहली गणेश मूर्ति की स्थापना की गई थी।

गणेश जी की जन्म कथा

गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न करती है जिसका नाम वे गणेश रखती है। माता पार्वती जी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर नहीं आने दे, ऐसा कहकर माता पार्वती अंदर नहाने चली गई।

जब भगवान शिव वहां पर आए तो बालक ने उन्हें अंदर आने से मना कर दिया और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते है। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी ने भगवान शिव की एक ना सुनी। तब शिवजी को गुस्सा आ गया और उन्होने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये।

जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं।

शिवजी ने पार्वती जी को कई बार मनाने का प्रयास किया लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाने का प्रयास किया। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये।

गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।