Rajasthan Election 2023 : प्रत्याशी तय करने परंपरा तोड़ संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल हुई थीं इंदिरा

Rajasthan Election 2023 : उत्तर प्रदेश विधानसभा के भावी चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सफलता के उद्देश्य से भरतपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में प्रत्याशी की जीत के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्टी की मान्य परम्पराओं की परवाह नहीं करते हुए एड़ी-चोटी का जोर लगाने से नहीं झिझकी।

inidra gandhi | Sach Bedhadak

Rajasthan Election 2023 : उत्तर प्रदेश विधानसभा के भावी चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सफलता के उद्देश्य से भरतपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में प्रत्याशी की जीत के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्टी की मान्य परम्पराओं की परवाह नहीं करते हुए एड़ी-चोटी का जोर लगाने से नहीं झिझकी। इस उपचुनाव की नींव भरतपुर जिले में तत्कालीन कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और राजनैतिक परिस्थितियों पर टिकी थी।

लोकसभा चुनाव जीत चुके पूर्व महाराजा ने 1972 में भरतपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मानस बनाया। उनकी एक शर्त थी कि यदि कांग्रेस नेता नत्थीसिंह भरतपुर से चुनाव लड़ें तो वह अन्य क्षेत्र से चुनाव लड़‌ना चाहेंगे। तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री राजबहादुर के हस्तक्प से भरतपुर से मुकु षेट बिहारी लाल गोयल एवं नत्थी सिंह को कुम्हेर से चुनाव लड़वाया गया।

वहीं कुम्हेर से निर्दलीय राजा मानसिंह ने नत्थी सिंह से चर्चा में कहा कि दोनों में कोई भी हारे एक जाट नेता तो खत्म होगा। बाबू राजबहादुर यही चाहते हैं। लेकिन नत्थीसिंह ने पार्टी के निर्देशानुसार चुनाव लड़ा और पराजित हुए। उधर पूर्व महाराजा बृजेन्द्र सिंह बतौर जनसंघ प्रत्याशी भरतपुर से चुनाव जीत गए लेकिन लगभग डेढ़ वर्ष पश्चात उन्होंने विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया। तब उपचुनाव की नौबत आयी। इस उपचुनाव का राजनैतिक महत्व था कि भरतपुर जिला उत्तर प्रदेश की सीमा से लगता है। उपचुनाव का परिणाम वहां की विधानसभा के भावी चुनाव को प्रभावित करेगा। इसलिए कांग्रेस हर हालत में यह उपचुनाव जीतना चाहती थी। लेकिन प्रत्याशी तय करने में दिल्ली एवं जयपुर में बैठे नेताओं की धड़ेबंदी खुलकर सामने आ गई।

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तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री राजबहादुर नत्थी सिंह को टिकट का सही दावेदार मानते थे लेकिन उपमंत्री जगन्नाथ पहाड़ि‌या हरीसिंह के पक्षधर थे। राजबहादुर विरोधी तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी इस मामले में पहाड़िया के साथ थे और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गिरधारी लाल व्यास भी उनके समर्थन में थे। इंदिरा गांधी गुप्तचर तंत्र की सूचना के चलते नत्थीसिंह की जीत के प्रति आश्वस्त थी। इसलिए वह पार्टी की परम्परा तोड़‌कर संसदीय बोर्ड की बैठक में दो बार शामिल हुई तथा उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति को प्रभावित करने के उद्देश्य से नत्थीसिंह को टिकट देने की बात कही।

हालांकि उपचुनावों के लिए प्रत्याशी तय करने संबंधी संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री शामिल नहीं होते। संबंधित राज्य में उपचुनाव में टिकट देने का फैसला मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर छोड़ा जाता है। इसलिए हरीसिंह को टिकट मिला। वर्ष 1962 में नत्थीसिंह को पराजित करने के लिए कांग्रेस पार्टी में उनके विरोधियों ने होतीलाल पाराशर को खड़ा किया था और वह मात्र छह वोट से विधानसभा चुनाव हार गए।

नत्थीसिंह को ऑफर किया था रोडवेज अध्यक्ष पद

एकतरफ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत में इंदिरा गांधी की मंशा दूसरी ओर हरी सिंह से चुनाव हार चुके नत्थी सिंह के लिए चुनाव प्रचार में जुटने का धर्मसंकट था। राजबहादुर भी हरी सिंह की जीत के इच्छुक नहीं थे। लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार को वह अपना नैतिक दायित्व समझते थे। उधर इंदिरा भी परेशान थीं। अगली एक जनवरी को नत्थीसिंह ने उनके निवास पर इंदिरा को नव वर्ष की बधाई दी। बकौल नत्थीसिंह- इंदिरा ने यूपी चुनाव के सिलसिले में भरतपुर उपचुनाव को महत्व बताते हुए कहा कि आप सम्मान सहित इस चुनाव में कार्य करें और इसके लिए रोडवेज अध्यक्ष पद स्वीकार कर लें।

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नत्थीसिंह का जवाब था- मुझे किसी पद की इच्छा नहीं है, परंतु मेरी चिंता यह है कि हम खूब मन लगाकर काम करें और वे जीत गए तो हमे कोई यश नहीं देंगे और संयोगवश हार गए तो हार का पूरा ठीकरा हमारे सिर फोड़ेंगे। आज मैं जिस पद पर हूं उससे भी हटाकर दम लेंगे। तत्काल इंदिरा बोली कि मैं हूं,कोई बात हो तो फौरन मुझे इतला करो, कोई गड़बड़ी नहीं होने दंगी।

हार के बाद हुई थी पद छीनने की कोशिश

भरतपुर जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक में राजबहादुर के खिलाफ वितरित पैम्फलेट पर नत्थीसिंह ने नाराजगी व्यक्त की और चुनावी जीत के लिए आपसी एकता पर बल दिया। इंदिरा को लिखे पत्र में इसकी जानकारी दी। मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी तथा मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगियों के भरतपुर में कैम्प के बावजूद हरीसिंह समाजवादी प्रत्याशी रामकिशन से पराजित हो गए। इससे नाराज होकर नत्थीसिंह को राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष पद से हटाया गया लेकिन इंदिरा के हस्तक्षेप से आदेश रद्द हो गया। उधर यूपी चुनाव की घोषणा हो गई।