एक ऐसा मंदिर जहां दो भाई 800 सालों से करते आ रहे हैं मां की पूजा, रात के समय में नहीं है किसी को शक्तिपीठ के पास जाने की इजाजत

भक्ति का पावन पर्व यानी चैत्र नवरात्रि शुरु हो चुकी है। इन 9 दिनों में देवी के सबकी 9 रूपों की पूजा की जाती है।…

| Sach Bedhadak

भक्ति का पावन पर्व यानी चैत्र नवरात्रि शुरु हो चुकी है। इन 9 दिनों में देवी के सबकी 9 रूपों की पूजा की जाती है। देश में मां शक्ति की साधना और उपासना के लिए कई शक्तिपीठ है। देशभर इन दिनों माता के सभी मंदिरों में भक्तों का जमावड़ा देखने को मिल सकता है। हर मंदिर का अपना एक इतिहास होता है। आज हम ऐसे ही एक एतिहासिक और चमत्कारी मंदिर की बात करेंगे। ये शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के सतना जिले में 600 फीट की ऊचांई पर स्थित है। इस जगह को मैहर नाम से जाना जाता है, मैहर का अर्थ है ‘मां का हार’। चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें।

नवरात्रों में लगता है श्रद्धालुओं का मेला

वैसे तो इस मंदिर में हमेशा ही श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि में यहां का नजारा किसी मेले से कम नहीं लगता है। कहा जाताहै कि, आज तक जिस भी भक्त ने सच्चे मन से यहां माथा टेका है उसकी हर मनोकामना पूरी हुई है। मैहर की इस चोटी पर माता के साथ-साथ श्री कालभैरव, हनुमान जी, काली मां, श्री शिव गौरी, शेषनाग, फूलमती माता, ब्रह्मदेव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है। साथ ही यहां यहां भगवान नृसिंह की प्राचीन मूर्ति भी देखने को मिल सकती है।

दो भाई 800 सालों से करते आ रहे हैं मां की पूजा

यहां रह रहे लोगों का मानना है कि, सैकड़ों साल पहले यहां पर दो भाई हुआ करते थें जिनका नाम था आल्हा और उदल। जो युद्ध में काफी अच्छे थे, साथ ही उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ कई बार युद्ध किया था। एक बार युद्ध के दौरान दोनों को जंगल में भटकते हुए एक माता का मंदिर दिखा। उस मंदिर को देखते ही दोनों के मन में भक्ति भाव जाग उठा। ऐसा कहा जाता है कि आल्हा माता की भक्ति में इतना लीन हो गया था कि, उसने 12 साल तक मां को खुश करने के लिए कठोर तप किया था।

मां ने दिया था आशिर्वाद

कहते हैं कि, उसका तप देख देवी बहुत प्रसन्न हुई थी और दोनों भाईयों को आशिर्वाद भी दिया था। तब आल्हा ने देवी माता को शारदा माई कहकर पुकारा था। जिसके बाद से ही इस मंदिर का नाम मैहर वाली शारदा पड़ गया। कहा जाता है कि, आज भी दोनों भाई रोजाना माता की पूजा करने के लिए मंदिर में आता हैं। इसलिए ये मंदिर रोजाना रात 2 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक बंद कर दिया जाता है। साथ ही इस समय पर किसी को भी मंदिर के गर्भगृह और इसके आस पास रहने की अनुमति नहीं है।

सुबह मिलते हैं चरणों में ताजे फूल

कहानी के अनुसार 800 सालों ले दोनों भाई माता की पूजा के लिए रोज सुबह मंदिर में प्रकट होते हैं। इस बात का सबूत ऐसे मिलता है कि, रोज सुबह जब मंदिर खोला जाता है तब माता का श्रृंगार और ताजे फूल चढ़े हुए मिलते हैं। इस पहाड़ी के नीचे एक तालाब और अखाड़ा भी है जहां कहा जाता है कि दोनों भाई कुश्ती किया करते थे।

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