4 राज्यों में भाजपा की कमजोर कड़ी को मजबूत कर गए पीएम मोदी ! या गुजरात में इतिहास रचेगी कांग्रेस

गुजरात औऱ राजस्थान के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बेहद महत्वपूर्ण कड़ी हैं। गुजरात में चुनाव इसी साल हैं लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के…

नरेंद्र मोदी

गुजरात औऱ राजस्थान के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बेहद महत्वपूर्ण कड़ी हैं। गुजरात में चुनाव इसी साल हैं लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के चुनाव में अभी वक्त है। लेकिन इससे पहले ही आदिवासियों की पॉलिटिक्स अपने चरम पर पहुंच गई है। इन्हें ही साधने के लिए कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान के बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम गए थे। यह तो सर्वविदित है कि भाजपा का गुजरात में आदिवासी वोटर्स नाममात्र का है। आदिवासी वोटर्स कांग्रेस के पारंपरिक मतदाता माने जाते हैं। इसलिए भाजपा अपनी इस कमजोर कड़ी को मजबूत करने में जुटी हुई है।

मानगढ़ से आदिवासियों को उम्मीद बंधा गए पीएम मोदी

दूसरी तरफ कांग्रेस अपने इस वोटबैंक को बचाने के लिए जुगत में लगी है। कल मानगढ़ को भले ही नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्मारक घोषित नहीं किया। लेकिन वे यहां आदिवासियों के लिए मानगढ़ धाम के विस्तृत रोडमैप व गुरू गोविंद के स्मृति स्थल को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए 4 राज्यों को निर्देश जरूर देकर गए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसे बाद में राष्ट्रीय स्मारक या और कोई नाम दे दिया जाएगा।

इससे पीएम नरेंद्र मोदी आदिवासियों को कुछ भरोसा देने में तो कामयाब को रहे लेकिन सीएम अशोक गहलोत ने एक बार फिर सबके सामने मंच से मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग पीए के सामने रखी। इससे एक बात तो साफ है कि आदिवासियों के विकास का क्रेडिट लेने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं है।

4 राज्यों में बेहद खराब स्थिति में भाजपा

पिछले विधानसभा चुनाव में गुजरात में आदिवासियों की 27 सीटों में सिर्फ 9 सीटें भाजपा के पास आई थीं। यहां तक कि गुजरात से सटे राजस्थान में भी भाजपा की आदिवासी बेल्ट में स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए भाजपा राजस्थान की आदिवासी धरती पर से एक साथ 4 राज्यों के आदिवासियों को साधने की कोशिश की। बता दें कि मध्य प्रदेश के पिछले साल के चुनाव में आदिवासियों की 47 सीटों में से भाजपा को सिर्फ 16 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसी तरह राजस्थान में भाजपा को 24 में से सिर्फ 9 सीटें मिली थीं व गुजरात से ही सटे महराष्ट्र में आदिवासी सीटों में से 14 में से 8 सीटें भाजपा को मिली थी।

अब ये आंकड़े कुछ नहीं सिर्फ इन राज्यों में भाजपा की आदिवासी बेल्ट में कमजोर नस सामने आ रही है। इसलिए भाजपा इन राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों में अपना जनाधार बढ़ाने की हर कोशिश कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो इन 4 राज्यों की आदिवासी क्षेत्रों की 112 सीटों में से सिर्फ 42 पर ही कमल खिला है।

पिछले साल कांग्रेस ने भाजपा को 99 पर समेटा था

गुजरात के पिछले चुनाव  भाजपा को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिली थीं। यह टक्कर ऐसी थी कि भाजपा को कांग्रेस ने 99 सीटों पर ही समेट दिया था और कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। गौर करें तो देखेंगे कि इनमें से कांग्रेस के पास आदिवासियों की 27 सीटों में से 14 सीटें कांग्रेस को मिली थी। भाजपा को 99 पर रोकने में इन आदिवासी सीटों ने काफी मदद की थी। अब भाजपा ने इस चुनाव में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। अब देखना यह है कि पिछली बार 99 पर सिमटने वाली भाजपा इस लक्ष्य को प्राप्त करेगी या फिर कांग्रेस 77 से ऊपर की छलांग लगाकर गुजरात में इतिहास लिखेगी।     

आम आदमी पार्टी पर कर रही कोशिश

अब गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबले का दावा कर रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी आदिवासियों  को अपने पाले में करनी की कोशिश में है। तभी तो आप के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने बीटीपी यानी भारतीय ट्राइबल पार्टी से गठबंधन की चर्चाएं हैं। गुजरात में आप के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने बीटीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश वसावा से गठबंधन की घोषणा की है। इसके अलावा बीटीपी के संस्थापक व विधायक छोटूभाई वसावा ने दिल्ली के सीएम व आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात कर साथ में चुनाव लड़ने का फैसला भी करर चुके हैं।

राजस्थान-गुजरात में आदिवासियों पर बीटीपी की पकड़

बीटीपी के प्रभाव के बारे में बात करें तो गुजरात में दो व राजस्थान में 3 विधायक हैं। बीटीपी की राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर में मजबूत पकड़ है। तो वहीं गुजरात के भी, बनासकांठा, अंबाजी, दाहोद, पंचमहाल, छोटा उदयपुर, नर्मदा जिले में अच्छी खासी पकड़ है। पिछला चुनाव बीटीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। जिसका फायदा दोनों ही पार्टियों को मिला था। कांग्रेस और बीटीपी में विवाद की स्थिति तब बनी, जब 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से भरूच सीट छोड़ने की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस ने बीटीपी की बात न मानकर अपना प्रत्याशी उतार दिया था। तब से  इन दोनों दलों में  दरार आ गई। अब बीटीपी का आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन हो गया है। 

  

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