लाल किले पर हमले के दोषी अशफाक की सजा-ए-मौत बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका की खारिज

नई दिल्ली। 22 दिसंबर 2000 को आतंकवादियों द्वारा लाल किले पर हमला किया गया। हमला इतना भयानक था जिसने पुरे देश को दहला दिया। वहीं…

Supreme Court | Sach Bedhadak

नई दिल्ली। 22 दिसंबर 2000 को आतंकवादियों द्वारा लाल किले पर हमला किया गया। हमला इतना भयानक था जिसने पुरे देश को दहला दिया। वहीं मामले में दिल्ली पुलिस ने हमले के मास्टरमाइंड मोहम्मद आरिफ उर्फ़ अशफाक सहित अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद हमले के मुख्य आरोपी अशफाक को फांसी की सजा सुनाई गई थी। जिस पर आरोपी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार की याचिका दायर की गई थी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया है और सजा को बरक़रार रखने का फैसला किया है।

कोर्ट ने कही ये बात

मामले पर चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की एक पीठ ने कहा कि उसने ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ पर विचार करने के आवेदन को स्वीकार किया है। वहीं पीठ ने या भी कहा कि “हम उस आवेदन को स्वीकार करते हैं कि ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ पर विचार किया जाना चाहिए. वह दोषी साबित हुआ है। हम इस अदालत के फैसले को बरकरार रखते हैं और पुनर्विचार याचिका खारिज करते हैं।”

गुनाह कबूल कर चुका था अशफाक

बता दें कि लाल किले पर हमले के बाद पुलिस ने फोन रिकॉर्ड के आधार पर अशफाक को गिरफ्तार किया था। अशफाक ने अपना गुनाह कबूल भी किया था। साथ ही उसने यह भी कबूल किया कि वह पाकिस्तानी है और उसका दूसरा साथी अब्दुल शमल एनकाउंटर में मारा गया था। मामले पर सुनवाई करते हुए 2005 में निचली अदालत ने अशफाक को भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और हत्या के आरोप में फांसी की सज़ा सुनाई थी। इसके बाद 2007 में हाईकोर्ट ने इस सज़ा की पुष्टि की और 2011 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी एस सिरपुरकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने भी इस सज़ा को बरकरार रहने का फैसला किया।

आरोपी को अपनी दलील रखने का मिला था मौका

2013 में अशफाक की रिव्यू पेटिशन और 2014 में क्यूरेटिव याचिका खारिज हुई। लेकिन 2014 में ही एक और फैसला आया। जिसके अनुसार अशफाक को दोबारा अपनी बात रखने का मौका मिल गया। जिसके चलते कोर्ट ने दलील रखने का मौका देते हुए कोर्ट ने उसकी फांसी पर रोक लगा दी थी। पिछले साल यानी 2021 में ही जस्टिस उदय उमेश ललित, एस रविंद्र भाट और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब चीफ जस्टिस बन चुके जस्टिस ललित ने आज तीनों जजों की ओर से फैसला पढ़ा और सजा को बरक़रार रखने का फैसला किया।

क्या हुआ था 22 साल पहले

22 साल पहले 22 दिसंबर 2000 को कुछ घुसपैठियों ने लाल किले पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी थी और तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इनमें 7वीं राजपुताना राइफल्स के दो जवान भी शामिल थे। बाद में पाकिस्तानी नागरिक आरिफ समेत अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया कर लिया गया था। वहीं 10 अगस्त 2011 में भी शीर्ष न्यायालय ने दोष के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

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