तलाक के मामलों में कौन पैसे देता है…पति या पत्नी? कोर्ट कैसे तय करता है, यहां जानें नियम

भारत में मिडिल क्लास फैमिली में लोग तलाक की बात करने से भी कतराते है। दरअसल, तलाक किसी भी व्यक्ति को मानसिक, इमोशनली और आर्थिक…

Divorce | Sach Bedhadak

भारत में मिडिल क्लास फैमिली में लोग तलाक की बात करने से भी कतराते है। दरअसल, तलाक किसी भी व्यक्ति को मानसिक, इमोशनली और आर्थिक रुप से काफी परेशान करने वाला होता है। एक तो बसा-बसाया घर उजड़ जाता है, दूसरा तलाक के बाद पत्नी को एलुमनी के रुप में मोटी रकम चुकानी पड़ती है। क्या आपको पता है कि एलुमनी और मेंटिनेंस की रकम का निर्धारण कई फैक्टर पर निर्भर करता है। नहीं तो आइए जानते हैं…

‘जैसा कोर्ट’ तलाक का ‘वैसा फैसला’
हमारे देश में तलाक के ज्यादातर मामलों का फैसला फैमिली कोर्ट करती हैं। ऐसे में मेंटनेंस और एलिमनी के बाद एक और दोनों पक्षों को वहन करना होता है, कानूनी प्रक्रिया में खर्च हुआ पैसा, इसी वजह से मेंटिनेंस और एलुमनी की रकम इस बात पर भी निर्भर करती है कि उस व्यक्ति का तलाक केस किस कोर्ट में चल रहा है।

यह कारण है देश में अलग-अलग राज्यों की बात तो छोड़ दे, अलग-अलग जिलों में भी तलाक के मामलों में मेंटिनेंस और एलुमनी की रकम एक समान नहीं होती है। इसी वजह से एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि तलाक के मामले में किसी व्यक्ति को इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि उसका केस किस कोर्ट में चल रहा है। यह उसकी लीगल कॉस्ट को तय करने में अहम फैक्टर होता है।

जानिए कैसे तय होती है एलुमनी-मेंटिनेंस की रकम
बता दें कि कोर्ट जब भी तलाक के मामलों में अंतरिम मेंटिनेंस और एलुमनी की राशि तय करते है। तब यह भी देखा जाता है कि कानूनी प्रक्रिया में कितनी रकम खर्च हुई है। इस रकम का फैसला जिस इलाके में कोर्ट स्थित है उस शहर या इलाके में कॉस्ट ऑफ लिविंग, दोनों पार्टी की इनकम कैसपेसिटी, सामाजिक नियम इत्यादि के आधार पर निर्धारित होती है। इसमें सामाजिक नियम का आधार उस राज्य या शहर की प्रति व्यक्ति आय होती है। वहीं किसी टियर-2 और टियर-3 शहर की कोर्ट अपेक्षाकृत कम मेंटिनेंस और एलुमनी चुकाने का ऑर्डर जारी कर सकती है।

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