राजस्थानी में शपथ क्यों नहीं ले पाए हमारे विधायक…क्या है संविधान की 8वीं अनुसूची का झोल? यहां समझें

कोलायत विधायक अंशुमान सिंह भाटी ने विधानसभा में राजस्थानी भाषा में शपथ ली जिसके बाद प्रोटेम स्पीकर के आपत्ति जताने पर उन्होंने हिंदी में शपथ ली.

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Rajasthan Assembly Session: राजधानी जयपुर में 16वीं राजस्थान विधानसभा का पहला सत्र बुधवार से शुरू हो गया जहां सभा के पहले दिन विधायकों को शपथ दिलाई गई. सदन के पहले दिन करीब 3 घंटे चले सत्र के बाद विधानसभा की कार्यवाही गुरुवार दोपहर ढाई बजे तक के लिए स्थगित की गई जहां सीएम भजनलाल शर्मा सहित 192 विधायकों ने शपथ ली. वहीं अब 7 विधायकों की शपथ बाकी है जिनमें 4 बीजेपी और 3 कांग्रेस के विधायक रहे हैं. इधर गुरुवार को विधानसभा अध्यक्ष के पद का चुनाव होगा.

वहीं दूसरी ओर विधानसभा में पहले दिन हिंदी के अलावा राजस्थानी भाषा में शपथ लेने वाले विधायक खासा चर्चा में रहे. हालांकि बाद में नियमों का हवाला देने पर विधायकों ने बाद में हिंदी में ही शपथ ली.

बीकानेर के कोलायत से आने वाले विधायक अंशुमान सिंह भाटी ने सत्र की शुरूआत में ही राजस्थानी भाषा में शपथ ली जिसके बाद प्रोटेम स्पीकर के आपत्ति जताने पर उन्होंने हिंदी में शपथ ली. वहीं इसके बाद शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने भी राजस्थानी में शपथ पढ़ी. इसके अलावा जोगेश्वर गर्ग और बाबूसिंह राठौड़ ने भी राजस्थानी में शपथ का निवेदन किया.

मालूम हो कि राजस्थानी भाषा को लेकर बीते महीने जयपुर में आंदोलन भी हुए और राजस्थानी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग काफी समय से उठ रही है. वहीं विधायकों के राजस्थानी में शपथ लेने के मामले में भी नियमों का हवाला दिया गया. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है वो संविधान की 8वीं अनुसूची जिसमें राजस्थानी को शामिल किए जाने की मांग हो रही है और इस अनुसूची में अभी तक कितनी भाषाएं शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

दरअसल इस साल जुलाई महीने में राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर फैसला लेना कोर्ट का काम नहीं है और यह एक नीतिगत मामला है जिस पर सरकार ही फैसला ले सकती है. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि आप सरकार के पास जाएं क्योंकि हर सवाल का जवाब कोर्ट के पास नहीं है.

संसद में सरकार ने क्या जवाब दिया था?

बीते दिनों संसद में संविधान की 8वीं अनुसूची को लेकर पूछे गए सवालों पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जवाब में कहा था कि संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं जिनमें (1) असमिया, (2) बंगाली (3) गुजराती, (4) हिंदी (5) कन्नड, (6) कश्मीरी, (7) कोंकणी, (8) मलयालम, (9) मणिपुरी, (10) मराठी, (11) नेपाली, (12) उड़िया, (13) पंजाबी, (14) संस्कृत, (15) सिंधी, (16) तमिल, (17) तेलुगू (18) उर्दू (19) बोडो, (20) संथाली, (21) मैथिली, (22) डोंगरी भाषा है.

वहीं आगे बताया गया कि इस समय संविधान की आठवीं अनुसची में 38 और भाषाओं को शामिल किए जाने की मांग चल रही है जिनमें (1) अंगिका, (2) बंजारा, (3) बजिका, (4) भोजपुरी, (5) भोटी, (6) भोटिया, (7) बुंदेलखंडी (8) छत्तीसगढ़ी, (9) धतकी, (10) अंग्रेजी, (11) गढ़वाली पहाड़ी (12) गोंडी (13) गुज्जर/गुज्जरी (14) हो, (15) कचाछी, (16) कातमपुरी, (17) कारबी, (18) खासी, (19) कोडवा (कूर्ग) (20) कुक बराक, (21) कुमाउंनी (पहाड़ी), (22) कुरुख, (23) कुर्माली, (24) लेपचा, (25) लिम्बू, (26) मिजो (लूशई), (27) मगही, (28) मुंदारी, (29) नागपुरी, (30) निकोबारी, (31) पहाड़ी (हिमाचली), (32) पाली, (33) राजस्थानी, (34) सम्बलपुरी/कोसली, (35) शौरसेनी (प्राकृत), (36) सिरैकी, (37) तेनियादी, और ( तुलू) शामिल है.

इसके अलावा सरकार की ओर से कहा गया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं को शामिल करने के लिए विषयपरक मानदंडों का कोई स्थापित सेट नहीं है और इसलिए और भाषाओं को शामिल करने की मांगों पर विचार करने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है.